जोगिया जी आवो ने या देस -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरह निवेदन


जोगिया जी आवो ने या देस ।।टेक।।
नैणज देखूँ नाथ मेरो, ध्‍याइ करूँ आदेस ।
आया सावण मास सजनी, भरे जल थल ताल ।
रावल कुण विलमाइ राखो, बिरहनि है बेहाल ।
बीछडियाँ कोइ भौ भयो ( रे जोगी ), ऐ दिन अहला जाय ।
एक बेरी देह फेरी, नगर हमारे आइ ।
वा मूरति मेरे मन बसे ( रे जोगी ), छिन भरि रह्यौइ न जाइ ।
मीराँ के प्रभु हरि अबिनासी; दरसण द्यौ हरि आइ ।।117।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आवो ने = आवो ना। या = इस। नैणज = जिससे नेत्रों द्वारा। ध्याई = ध्यान करके। आदेस = निवेदन। जल = जल से। रावल = मेरे राजा वा प्रियतम को। कुण = किसने। बिलमाई = लुभा कर रोक रक्खा। कोई भौ = एक युग का ही ल्रबा समय। ऐ = ये। अहला = व्यर्थ ( देखो - ‘साल्ह, कुंवर, जोगी कहइ, अहलउ केम मरन’ - ढोला मारूरा दूहा )। जाय = जाते हैं, बीत रहे हैं। बेरी = बार। देह फेरी = चक्कर लगा जा।

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