जोगबिधि मधुवन सिखिहै जाइ।
मन-वच कर्म सपथ सुनि ऊधौ सगहि चलौ लिवाइ।।
सब आसन, रेचक अरु पूरक, कुभक सीखहि भाइ।
हम जो करत देखिहै कुबिजहिं, तेई करब उपाइ।।
श्रद्धासहित ध्यान एकहिं सँग, कहत जाहिं जदुराइ।
‘सूर’ सुप्रभु की जापर रुचि है, सो हम करिहैं आइ।
आज्ञाभंग करै हम क्यौ करि, जौ पतिव्रत बिनसाइ।।3710।।