जुवति बोधि सब घरहिं पठाई।
यह अपराध मोहिं बकपौ रो, यहै कहति हौं मेरी माई।।
इत तैं चलीं घरनि सब गोपी, उत तैं आवत कुवंर कन्हाई।
बीचहिं भेट भई जुवतिनि हरि, नैननि जोरत गई लजाई।।
जाहु कान्ह महतारी टेरति, बहुत बड़ाई करि हम आई।
सूर स्याम मुख निरखि कह्यौ हंसि, मैं कैहौं जननी समुझाई।।1425।।