जुरि चली हें बधावन नंद महर घर 2 -नंददास

मंगल कलश निकट दीपावली -नंददास

Prev.png


मंगल कलश निकट दीपावली, ठांय ठांय देखि मन भूल्यो।
मानो आगम नंद सुवन को, सुवन फूल ब्रज फूल्यो॥6॥

ता पाछे गन गोप ओप सों, आये अतिसे सोहें।
परमानंद कंद रस भीने, निकर पुरंदर कोहे॥7॥

आनंद घर ज्यों गाजत राजत, बाजत दुंदुभी भेरी।
राग रागिनी गावत हरखत, वरखत सुख की ढेरी॥8॥

परमधाम जग धाम श्याम अभिराम श्री गोकुल आये।
मिटि गये द्वंद नंददास के भये मनोरथ भाये॥9॥

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः