जा दिन स्याम मिलै सोइ नीकौ।
जोतिष निगम पुरान बड़े ठग, फाँसत जे जिय ही कौ।।
जौ बूझी तौ ऊतर दीजै, बिनु बूझै रस फीकौ।
अपनै अपनै ठौर सबै गृह, हरन भयौ क्यौ सी कौ।।
सुनि रे मधुप मूढ़ ब्रज आयौ, लै सरजस कौ टीकौ।
चातक मीन कमल घन चाहत, कब मन करत अमी कौ।।
भद्रा भली, भरनि भय हरनी, चलत मेष अरु छीकौ।
‘सूर’ धरम धरि लाल गुनै जौ, तौ प्रेमी कौड़ी कौ।।3828।।