जानि हौं अब वाने की बात -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग गौरी




जानि हौं अब वाने की बात।
मोसौं पतित उधारौ प्रभु जौ, तौ ब‍दिहौं निज तात।
गीध, ब्‍याघ, गनिकाऽरु अजामिल, ये को आहिं बिचारे।
ये सब पतित न पूजत मो सम, जिते पतित तुम तारे।
जौ तुम पतितनि के पावन हौ, हौं हूँ पतित न छोटौ।
विरद आपुनौ और तिहारौ, करिहौं लोटक-पोटौ।
कै हौं पतित रहौं पावन ह्वै, कै तुम बिरद छुड़ाऊँ।
द्वै मैं एक करौं निरबारौ, पतितनि-राव कहाऊँ।
सुनियत है, तुम बहु पतितनि कौं दीन्‍हौं है सुखधाम।
अब तौ आनि परयौ है गाढ़ौ, सूर पतित सौं काम।।179।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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