जानकी मन संदेह न कीजै।
आए राम लषन प्रिय तेरे, काहे प्राननि दीजै।।
जामवंत सुग्रीव बालिसुत आए सकल नरेस।
मोहि कह्यौ तुम जाहु खबरि कौ अब जिनि करौ अँदेस।।
रावन के दस सीस तोरि कै कुटुँब समेत बहैहौ।।
तैंतिस कोटि देवता बंधन तिनहिं समस्त छुडैहौ।।
आयसु दीजै मातु मोहि अब जाइ प्रभुहिं लै आऊँ।
'सूरदास' हौ जाइ नाथ पहँ तेरी कुसल सुनाऊँ।। 2 ।।