जागो म्‍हांरा जगपति राइक -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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अनुनय


राग प्रभाती


जागो म्‍हाँरा जगपति राइक, हँसि बोलो क्‍यूँ नहीं ।। टेक ।।
हरि छोजी हिरदा माँहि, पट खोलो क्‍यूँ नहीं ।
तन मन सुरति सँजोइ, सीस चरणा धरूँ ।
जहाँ जहाँ देखूँ म्‍हारो राम, जहाँ सेवा करूँ ।
सदकै करूँ जी सरीर, जुगै जुग बारणैं ।
छोड़ी छोड़ी कुल की लाज, साहिब तेरे कारणैं ।
थोड़ी थोड़ी लिखूं सिलाम, बहोत करि जाणज्‍यौ ।
बंदी हूँ खनाजाद, महरि करि मानज्‍यौ ।
हाँ हो म्‍हरा नाथ सुनाथ, बिलम नहिं कीजियै ।
मीराँ चरणाँ की दास, दरस अब दीजियै ।।55।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राइक = राजा, स्वामी ( राइक में ‘क’ छंद पूर्ति कि लिये प्रयुक्त जान पड़ता है। ) छो = हो, हैं। सुरति = भगवान् की स्मृति के साथ। संजोई = सजा कर। जहाँ = वहाँ। सदकै = समर्पित, न्यौछावर। जुगै जुग = जुग जुग, सदा। वारणैं = वारी जाऊँ, न्यौछावर कर दूँ। छोडी छोडी = नितांत रूप से त्याग दी। सिलाम = सलाम, प्रणाम। बहोत = बहुत। जाणज्यौ = जानना। बंदी = दासी। खानाजाद = जन्म से ही घर में पाली पोसी हुई दासी वा गुलाम ( देखो - ‘मन विगर्यौ से नैन विगारे। ...ए सब कहौ कौन हैं मेरे ख़ानाज़ाद विचारे’ - सूरदास )। महरि = कृपा। मानज्यौ = स्वीकार कर लेना। विलम = विलंब, देर।

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