जाकों दीनानाथ निवाजैं।
भव-सागर मैं कवहुँ न झूकै, अभय निसाने बाजैं।
विप्र सुदामा कौं निधि दीन्हीं, अर्जुन रन मैं गाजै।
लंका राज बिभीषन राजैं, ध्रुव आकास बिराजैं।
मारि कंस-केसी मथुरा मैं, मेट्यौ सबै दुराजैं।
उग्रसेन-सिर छत्र धरयौ है, दानव दस दिसि भाजैं।
अंबर गहत द्रौपदी राखी, पलटि अंध-सुत लाजैं।
सूरदास प्रभु महा भक्ति तैं, जाति अजातिहिं साजैं।।36।।