जसुमति यह कहि कै रिस पावति।
रोहिनि करति रसोई भीतर, कहि-कहि ताहि सुनावति।
गारी देत बहू बेटिनि कौं, वै धाई ह्यां आवति।।
हा हा करति सबनि सौं मैं हीं कैसैंहु खूँट छुड़ावति।
जाति पांति सौं कहा अचगरी,कहि सुतहिं धिरावति।।
सूर स्याम कौं सिखवति हारी, मारेहुँ लाज न आवति।।1427।।