जसुमति कहति कान्ह मेरे प्यारे, अपनैं ही आँगन तुम खेलौ।
बोलि लेहु सब सखा संग के, मेरौ कह्यौ कबहुँ जिनि पेलौ।
ब्रज-बनिता सब चोर कहतिं तोहिं, लाजनि सकुचि जात मुख मेरौ।
जब मोहिं रिस लागति तब त्रासति, बाँधति, मारति, जैसें चेरौ।
सूर हँसति ग्वालिनि दै तारी, चोर नाम कैसैहुँ सुत फेरौ।।399।।