जल-सुत-सुत ताकौ रिपुपति -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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राग केदारौ




जल-सुत-सुत ताकौ रिपुपति सुत घेरि लई सखि कत हौ धाऊ।
कालनेमि रिपु ताकौ रिपु अरु ता बनिता कौ काहुँ न पाऊँ।।
धरनि गगन मिलि होइ जु सजनी सो गए ता बिनु दिन बिलखाऊँ।
दसरथ-तात-सत्रु कौ भ्राता ता प्रिय सुता सु कैरौ पाऊँ।।
एक उपाय जानि जौ पाऊँ मो खगपति-पितु-दृष्टि चुराऊँ।
'सूरदास' ते गिरिवरभ्राता चिता रहित सकल दिन गाऊँ।। 70 ।।

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