जल-सुत-सुत ताकौ रिपुपति सुत घेरि लई सखि कत हौ धाऊ।
कालनेमि रिपु ताकौ रिपु अरु ता बनिता कौ काहुँ न पाऊँ।।
धरनि गगन मिलि होइ जु सजनी सो गए ता बिनु दिन बिलखाऊँ।
दसरथ-तात-सत्रु कौ भ्राता ता प्रिय सुता सु कैरौ पाऊँ।।
एक उपाय जानि जौ पाऊँ मो खगपति-पितु-दृष्टि चुराऊँ।
'सूरदास' ते गिरिवरभ्राता चिता रहित सकल दिन गाऊँ।। 70 ।।