जली लता-सी पड़ी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

Prev.png
राग जोगिया - तीन ताल


जली लता-सी पड़ी, उठाकर रखी श्यामने गोद।
कर कमलोंसे लगे केश सहलाने मधुर समोद॥
बचन-सुधा अति मधुर पिलाकर तन लौटाया चेत।
हृदय लगाकर बोले प्रियतम माधव प्रेम-निकेत॥
’प्रिये ! मधुरतम है यह लीला-रस-वारिधिका रंग।
परम विचित्र तुम्हारा, इसमें उठती विविध तरंग॥
लीला-रसके ही स्वरूप दो विप्रलभ-सम्भोग।
नहीं वस्तुतः हु‌आ, न होगा, हममें कभी वियोग॥
दुग्ध-धवलता, अग्रि-दहनता ज्यों रवि-रश्मि अभिन्न।
त्यों-मैं तुम; तुम मैं, न करो तुम प्रिये ! तनिक मन खिन्न॥
मथुरा रहूँ, तुलसिकावन या हो को‌ई-सा स्थान।
हम दोनोंके बीच न होगा कभी रच व्यवधान॥
एक, बने दो खेल रहे हम नित्य अनादि अनंत।
मधुर दिव्य रस-मत्त परस्पर नित्य निरतिशय रंत’॥
राधा हु‌ई प्रसन्न देखकर प्रियतम-वदन प्रसन्न।
तत्सुख-सुखी सदा ही दोनों सहज अभिन्न-विभिन्न॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः