सरद सुहाई आई राति 6 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री


चौकी चमकरति उर लगी।
कौस्तुभ मनि राजति रुचि पोति। दसन चमक दामिनि तैं ज्योति।।
सरस अधर पल्लव बने।
चिबु‍क मध्य स्यामल रुचि बिंद। देखि सबनि रीझे गोबिंद।।
रास रसिक गुन गाइ हो।
सघन बिमान गगन भरि रहे। कौतुक देखन सुर उमहे।।
नैन सुफल सबके भए।
बजे देवलोक नीसान। बरषत सुमन करत सुर गान।।
मुनि किन्नर जय ध्वनि करैं।
जुवतिनि बिसरे पति गति गेह। प्रेम-मगन सब सहित सनेह।।
यह सुख हमकौं हो कहाँ।
सुंदरता सब सुख की खानि। रसना एक न परत बखानि।।
रास रसिक गुन गाइ हो।
नील कंचुकी मांडनि लाल। भुजनि नवै आभूषन माल।।
पीत पिछौरी स्याम तनु।
अंगुरिनि मुंदरी पहुँची पानि। कछि कटि कछनि किंकिनी-बानि।।
उर नितंब बेनी रुरै।
नारा बंदन सूथन जंघन। पाइनि नूपुर बाजत संघन।।
नखनि महावर खुलि रह्यौ।
राधा मोहन मंडल माँझ। मनहुं बिराजत चदा साँझ।।
रास रसिक गुन गाइ हो।
पग पटकत लटकत लट बाहु। मटकत भौंहनि हस्त उछाह।।
अंचल चंचल झूमका।
दुरि-दुरि देखत नैननि सैन। मुख की हँसो कहत मृदु बैन।।
मंडित गंड प्रस्वेद कन।
चौरी ढोरी बिगलित केस। झूमत लटकत मुकुट सुदेस।।
फूल खसत सिर तैं घने।
कृष्न बधू पावन जस गाइ। रीझत मोहन कंठ लगाइ।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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