चोरी के फल तुमहि दिखाऊँ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग कान्हरौ


चोरी के फल तुमहि दिखाऊँ।
कन्चन खंभ डोर कन्चन की, देखौ तुमहिं बँधाऊँ।।
खंडौ एक अंग कछु तुम्हरौ, चोरी नाउँ मिटाऊँ।
जो चाहो सोई सब लैहौ, यह कहि छाँड़ मनाऊँ।।
बीच करन जौ आवै कोऊ, ताकौ सौह दिवाऊँ।
'सूर' स्याम चोरनि के राजा, बहुरि कहाँ मैं पाऊँ।।1937।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः