श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी176. महाप्रभु के वृन्दावनस्थ छ: गोस्वामिगण
6–श्रीगोपाल भट्ट ये श्रीरंग क्षेत्र निवासी वेंकट भट्ट के पुत्र तथा श्री प्रकाशानन्द जी सरस्वती के भतीजे थे। पिता के परलोकगमन के अनन्तर ये वृन्दावन वास के निमित्त चले आये। दक्षिण-यात्रा में जब ये छोटे थे तभी प्रभु ने इनके घर पर चौमासे के चार मास बिताये थे। उसके बाद इनकी फिर महाप्रभु से भेंट नहीं हुई। इनके आगमन का समाचार श्री रूपसनातन जी ने प्रभु के पास पठाया था, तब प्रभु ने एक पत्र भेजकर रूप और सनातन इन दोनों भाइयों को लिखा था कि उन्हें स्नेह से अपने पास रखना और अपना सगा भाई ही समझना। महाप्रभु ने अपने बैठने का आसन और डोरी इनके लिये भेजी थी। इन दोनों प्रभुपसादी अमूल्य वस्तुओं को पाकर ये परम प्रसन्न हुए। ध्यान के समय ये प्रभु की प्रसादी डोरी को सिर पर धारण करके भजन किया करते थे। इनके उपास्यदेव श्री राधारमण जी थे। सुनते हैं, इनके उपास्यदेव पहले शालग्राम के रूप में थे, उन्हीं की ये सेवा-पूजा किया करते थे, एक बार कोई धनिक वृन्दावन में आया। उसने सभी मन्दिरों के ठाकुरों के लिये सुन्दर वस्त्राभूषण प्रदान किये। इन्हें भी लाकर बहुत से सुन्दर-सुन्दर वस्त्र और गहने दिये। वस्त्र और गहनों को देखकर इनकी इच्छा हुई कि यदि हमारे भी ठाकुर जी के हाथ-पैर होते तो हम भी उन्हें इन वस्त्रा भूषणों को धारण कराते। बस, फिर क्या था। भगवान तो भक्त के अधीन हैं, वे कभी भक्त की इच्छा को अन्यथा नहीं करते। उसी समय शालग्राम की मूर्ति में से हाथ-पैर निकल आये और भगवान श्री राधारमण मुरली धारी श्याम बन गये। भट्ट जी की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने भगवान को वस्त्रा भूषण पहनाये और भक्तिभाव से उनकी स्तुति की। श्री निवासाचार्य जी इन्हीं के शिष्य थे। इनके मन्दिर के पुजारी श्री गोपालनाथदास जी भी इनके शिष्य थे। इनके परलोकगमन के अनन्तर श्री गोपालनाथदास जी ही उस गद्दी के अधिकारी हुए। श्री गोपालनाथदास के शिष्य श्री गोपीनाथदास जी अपने छोटे भाई दामोदरदास जी को शिष्य बनाकर उनसे विवाह करने के लिये कह दिया। वर्तमान श्री राधारमण जी के गोस्वामिगण इन्हीं श्री दामोदर जी के वंशज हैं। वृन्दावन में श्री राधारमण जी की वही मनोहर मूर्ति अपने अद्भुत और अलौकिक प्रभाव को धारण किये हुए अपने प्रिय भक्त श्री गोपाल भट्ट की शक्ति और एकनिष्ठा की घोषणा कर रही है। भक्तवत्सल भगवान क्या नहीं कर सकते। श्रीकृष्ण ! गोविन्द ! हरे ! मुरारे ! |