श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी174. श्री श्री निवासाचार्य जी
श्री निवास जी ने सरकार ठाकुर की ख्याति तो सुन रखी थी, किन्तु उनके दर्शन का सौभाग्य उन्हें आज तक कभी प्राप्त नहीं हुआ था। इधर ठाकुर सरकार ने भी बालक श्री निवास की असाधारण प्रतिभा और प्रभु परायणता की प्रशंसा सुन रखी थी और वे उस होनहार बालक को देखने के लिये लालायित भी थे। सहसा दोनों की रास्ते में भेंट हो गयी। श्री निवास जी ने श्रद्धा-भक्ति के सहित सरकार ठाकुर के चरणों में प्रणाम किया। श्री निवास जी के नाना श्री बलरामाचार्य के कोई सन्तान नहीं थी, ये ही उनकी सम्पूर्ण सम्पत्ति के एकमात्र उत्तराधिकारी थे, अत: ये अपनी माता को लेकर जाजि ग्राम में जाकर रहने लगे। इनकी बार-बार इच्छा होती थी कि सब कुछ छोड़-छाड़कर श्री चैतन्य-चरणों की ही शरण लें, किन्तु स्नेहमयी माता के बन्धन के कारण वे ऐसा कर नहीं सकते थे, किन्तु एक बार पुरी चलकर उनके दर्शनों से तो इन नेत्रों को कृतार्थ कर लें यह उनकी प्रबल वासना थी। जाजि ग्राम की भक्त-मण्डली में इनका अत्यधिक आदर था। इस अल्पावस्था में ही इनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी थी। अत: इन्होंने अपनी इच्छा सरकार ठाकुर पर प्रकट की। सरकार ठाकुर ने प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा- ‘तुम पुरी जाकर श्रीचैतन्य-चरणों के दर्शन अवश्य करो। मैं तुम्हारे साथ एक आदमी किये देता हूँ।’ यह कहकर उन्होंने एक आदमी इनके साथ कर दिया और ये उसके साथ पुरी की ओर चल पड़े। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गदाधर पण्डित