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श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी
21. पिता का परलोकगमन
मिश्र जी अपने जीवन की आशा से निराश हो गये। उन्हें अपने अन्तिम समय का ज्ञान हो गया। क्षीण स्वर में उन्होंने शची देवी से कहा- ‘अब मेरे जीवन की कोई आशा नहीं है, मालूम होता है, इस शरीर से अब मैं अपनी आशा को पूरी होते न देख सकूँगा, अच्छा, जैसी रघुनाथ जी की इच्छा। मैं अब क्या कहूँ, मेरे साथ तुम्हें कुछ भी सुख प्राप्त न हो सका। भगवान की ऐसी ही मर्जी थी, अब मै तो थोड़े ही समय का मेहमान हूँ, निमाई का खयाल रखना।’ इतना कहते-कहते मिश्र जी की साँस फूलने लगी। आगे वे कुछ भी न कह सके और चुप होकर लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगे। शची देवी फूट-फूटकर रोने लगी। पिता की ऐसी दशा देखकर निमाई ने उन्हें खाट से नीचे उतारने की सलाह दी। मिश्र जी नीचे दाभ के आसन पर लिटाये गये। मिश्र जी ने नीचे से धीरे-धीरे कहा- ‘मुझे श्री भागीरथी के तट पर ले चलो।’ उनकी इच्छा के अनुसार निमाई माता के साथ उन्हें स्वयं गंगातट पर ले गये। ग्यारह वर्ष के बालक ने किसी दूसरे को हाथ नहीं लगाने दिया। माता की सहायता से वे स्वयं मिश्र जी को गंगातट पर ले गये।’
निमाई ने भी समझ लिया कि अब पिता जी हमें छोड़कर सदा के लिये जा रहे हैं। इसलिये उन्होंने रोते-रोते कहा- ‘पिता जी! मुझसे क्या कहते हैं, मुझे किसके हाथों सौंप रहे हैं?’
मिश्र जी ने अपने शक्तिहीन हाथ को धीरे-धीरे उठाकर निमाई के सिर पर फिराया और उनके सिर को छाती पर रखकर क्षीण स्वर में कहा- ‘निमाई! मैं तुझे भगवान विश्वम्भर के हाथों सौंपता हूँ, वे ही तेरी रक्षा करेंगे।’ यह कहते-कहते मिश्र जी ने पुण्यतोया भगवती भागीरथी की गोद में अपना यह नश्वर शरीर त्याग दिया। निमाई और शचीदेवी चीत्कार करके रोने लगे। सगे-सम्बन्धियों ने उन्हें धैर्य धारण कराया। यथाविधि निमाई ने पिता की अन्त्येष्टि क्रिया की। पिता के परलोकगमन से उन्हें बहुत दुःख हुआ। माता को तो चारों ओर अन्धकार-ही-अन्धकार प्रतीत होने लगा। उन्हें मिश्र जी की असामयिक मृत्यु से बहुत दुःख हुआ। घर में कोई दूसरा नहीं था। इसलिये गौर ने ही माता को धैर्य धारण कराया। उन्होंने माता से कहा- ‘अम्मा! भाग्य को कौन मेट सकता है। मृत्यु तो एक-न-एक दिन सभी की होनी है। हमारे भाग्य में इतने ही दिन पिता जी का साथ बदा था। अब वे हमें छोड़कर चले गये। तुम इतनी दुःखी मत हो। तुम्हें दुःखी देखकर मेरा कलेजा फटने लगता है। मैं हर तरह से तुम्हारी सेवा करने को तैयार हूँ।’ निमाई के समझाने पर माता ने धैर्य धारण किया और अपने शोक को छिपाया।
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