श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी171. समुद्रपतन और मृत्युदशा
हम संसारी लोग तो मृत्यु को ही अन्तिम दशा समझते हैं, इसलिये संसारी दृष्टि से प्रभु के शरीर का यहीं अन्त हो गया। फिर उसे चैतन्यता प्राप्त नहीं हुई। किन्तु रागानुगामी भक्त तो मृत्यु के पश्चात भी विरहिणी को चैतन्यता लाभ कराते हैं। उनके मत में मृत्यु ही अन्तिम दशा नहीं है। इस प्रसंग में हम बंगला भाषा के प्रसिद्ध पदकर्ता श्री गोविन्ददास जी का एक पद उद्धृत करते हैं। इससे पाठकों को पता चल जायगा कि श्री कृष्ण नाम श्रवण से मृत्युदशा को प्राप्त हुई भी राधिका जी फिर चैतन्यता प्राप्त करके बातें कहने लगीं। कुंज भवने धीन। तुया गुण गणि गणि। श्रीकृष्ण से एक सखी श्री राधिका जी की दशा का वर्णन कर रही है। सखी कहती है– ‘हे श्यामसुन्दर! राधिका जी कुंजभवन में तुम्हारे नामों को दिन-रात रटते-रटते अत्यन्त ही दुबली हो गयी हैं। जब उनकी मृत्यु के समीप की दशा मैंने देखी तब उन्हें उस कुंजकुटीर से बाहर कर लिया। प्यारे माधव ! अब तुमसे क्या कहूँ, बाहर आने पर उसकी मृत्यु हो गयी, सभी सखियाँ उसकी मृत्युदशा को देखकर रुदन करने लगीं। उनमें एक चतुर सखी थी, वह उसके कान में तुम्हारा नाम बार-बार कहने लगी। बहुत देर के अनन्तर उस सुन्दरी के शरीर में कुछ-कुछ प्राणों का संचार होने लगा। थोडी देर में वह गद्गद-कण्ठ से ‘श्याम’ ऐसा कहने लगी। तुम्हारे नाम का त्रिभुवन में ऐसा गुण सुना गया है कि मृत्यु-दशा को प्राप्त हुआ प्राणी भी पुन: बात कहने लगता है। सखी कहती है– ‘तुम इस बात को झूठ मत समझना। यदि तुम्हें इस बात का विश्वास न हो, तो मेरे साथ चलकर उसे देख आओ।’ यह पद गोविन्द दास कवि द्वारा कहा गया है।’ इसी प्रकार भक्तों ने भी प्रभु के कानों में हरिनाम सुनाकर उन्हें फिर जागृत किया। वे अर्धबाह्य दशा में आकर कालिन्दी में होने वाली जलकेलि का वर्णन करने लगे। ‘वह साँवला सभी सखियों को साथ लेकर यमुना जी के सुन्दर शीतल जल में घुसा। सखियों के साथ वह नाना भाँति की जलक्रीडा करने लगा। कभी किसी के शरीर को भिगोता, कभी दस-बीसों को साथ लेकर उनके साथ दिव्य-दिव्य लीलाओं का अभिनय करता। मैं भी उस प्यारे की क्रीडा में सम्मिलित हुई। वह क्रीडा बडी ही सुखकर थी।’ इस प्रकार कहते-कहते प्रभु चारों ओर देखकर स्वरूप गोस्वामी से पूछने लगे– ‘मैं यहाँ कहाँ आ गया? वृन्दावन से मुझे यहाँ कौन ले आया?’ तब स्वरूप गोस्वामी ने सभी समाचार सुनाये और वे उन्हें स्नान कराकर भक्तों के साथ वास स्थान पर ले गये। |