|
श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी
19. निमाई का अध्ययन के लिये आग्रह
मिश्र जी ने कहा- ‘हम तुम्हें अपनी शपथ दिलाकर कहते हैं, तुम आज से पढ़ना बंद कर दो। हमारी यही इच्छा है कि तुम पढ़ने-लिखने में विशेष प्रयत्न न करो।’ जिस दिन से विश्वरूप गृह त्यागकर चले गये थे, उस दिन से निमाई माता-पिता की आज्ञा को कभी नहीं टालते थे। पिता की बात सुनकर इन्होंने नीचे सिर झुकाये हुए ही धीरे से कहा- ‘जैसी आज्ञा होगी मैं वही करूँगा।’ इतना कहकर ये भीतर माता के पास चले गये और पिता की आज्ञा माता को सुना दी। दूसरे दिन से इन्होंने पढ़ना-लिखना बिलकुल बंद कर दिया। अब इन्होंने अपनी वही पुरानी चंचलता फिर आरम्भ कर दी। लड़कों के साथ गंगा जी के घाटों पर जाते, घण्टों जल में ही स्नान करते रहते। कभी अपने साथियों को लेकर लोगों के ऊपर पानी उलीचते। स्त्रियों के पास चले जाते, छोटे-छोटे बच्चों को रूला देते। स्त्रियों के सूखे वस्त्रों को जल में फेंककर भाग जाते। किसी की घाट पर रखी हुई नैवेद्य को बिना उसके पूछे ही जल्दी से चट कर जाते। कोई आकर डाँटने लगता तो बड़े जोरों के साथ रोने लगते, सभी बालक इनके चारों ओर खडे़ हो जाते, आस-पास से और भी लोग इकट्ठे हो जाते। कोई तो उस डाँटने वाले को बुरा-भला कहता। कोई इन्हें शान्त करने की चेष्टा करता। बहुत-से कहते- ‘अजी! कोई कहाँ तक सहन करे, यह लड़का है भी बड़ा उपद्रवी, किसी की सुनता ही नहीं।’
इस प्रकार लोग नित्य-प्रति जा-जाकर मिश्र जी से शिकायत करते। मिश्र जी इन्हें पुचकारकर कहते- ‘बेटा! इतना दंगल नहीं करना चाहिये।’ आप धीरे से कहते- ‘तब हम करें क्या? जब पढ़ने न जायँगे तो बालकों के साथ खेल ही करेंगे। हमसे चुपचाप घर में तो बैठा नहीं जाता।’ पिता इनका ऐसा उत्तर सुनकर चुप हो जाते। ये भाँति-भाँति के खेल खेलने लगे। एक दिन आपने बहुत ही फटे-पुराने कपड़े पहन लिये, आँखों में पट्टी बाँध ली और एक लड़के का कंधा पकड़कर घर-घर भीख माँगने लगे। बहुत-से लड़के इनके साथ ताली बजा-बजाकर हँसते जाते थे। ये घरों में जाते और स्त्रियों से कहते- ‘माई! अन्धे को भीख डालना, भगवान तेरा भला करेंगे।’ स्त्रियाँ इनकी ऐसी क्रीड़ा देखकर खूब जोरों से हँसने लगतीं और इन्हें कुछ खने की चीजें दे देतीं। ये उसे अपने साथियों में बाँटकर खा लेते और फिर दूसरे घर में जाते। इस प्रकार ये अपने घर भी गये।
|
|