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श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी
155. महाप्रभु की अलौकिक क्षमा
महाप्रभु श्री मन्दिर के समीप ही रहते थे। वहीं कहीं पास में ही एक उड़िया ब्राह्मणी का घर था। वह ब्राह्मणी विधवा थी, उसका एक तेरह-चौदह वर्ष का लड़का प्रभु के पास आया करता था। उस लड़के का सौन्दर्य अपूर्व ही था। उसके शरीर का रंग तप्त कांचन के समान बड़ा ही सुन्दर था, अंग प्रत्यंग सभी सुडौल-सुन्दर थे। शरीर में स्वाभाविक बालचापल्य था। अपनी दोनों बड़ी बड़ी सुहावनी आँखें से वह जिस पुरुष की भी ओर देख लेता वही उसे प्यार करने लगता। वह प्रभु को प्रणाम करने के लिये नित्य प्रति आता। प्रभु उससे अत्यधिक स्नेह करने लगे। उसे पास में बिठाकर उससें प्रेम की मीठी मीठी बातें पूछते, कभी कभी उसे प्रसाद भी दे देते। बच्चों का हृदय तो बड़ा ही सरल और सरस होता है, उनसे जो भी प्रेम से बोले वे उसी के हो जाते हैं। प्रभु के प्रेम के कारण उस बच्चे का ऐसा हाल हो गया कि उसे प्रभु के दर्शनों के बिना चैन ही नहीं पड़ता था। दिन में दो दो, तीन तीन बार वह प्रभु के पास आने लगा। दामोदर पण्डित प्रभु के पास ही रहते थे। उन्हें उस अद्वितीय रूप लावण्ययुक्त अल्पवयस्क बच्चे का प्रभु के पास इस प्रकार से आना बहुत ही बुरा लगने लगा। वे एकान्त में बच्चे को डाँट भी देते और उसे यहाँ आने का निषेध भी कर देते, किन्तु हृदय का सच्चा प्रेम किसकी परवा करता है। अत्यन्त प्रेम मनुष्यों को ढीक बना देता है।
पण्डित के मना करने पर भी वह लड़का बिना किसी की बात सुने निर्भय होकर प्रभु के पास चला जाता और घंटों उनके पास बैठा रहता। प्रभु बाल भाव में उससे भाँति-भाँति की बातें किया करते। मनुष्य के स्वभाव में एक प्रकार की क्रूरता होती है। जब हम किसी पर अपना पूर्ण अधिकार समझने वाला कोई दूसरा पुरुष भी हो जाता है तो हम मन ही मन उससे डाह करने लगते हैं, फिर चाहे वह कितना भी सर्वगुणसम्पन्न क्यों न हो, हमें वह राक्षस सा प्रतीत होता है। दामोदर पण्डित का भी यही हाल था। उन्हें उस विधवा के सुन्दर पुत्र की सूरत से घृणा थी, उसके नाम से चिढ़ थी, उसे देखते ही वे जल उठते। एक दिन उन्होंने उस लडत्रके को प्रभु के पास बैठा देचाा। प्रभु उससे हँस-हँस कर बातें कर रहे थे। उस समय तो उन्होंने प्रभु से कुछ नहीं कहा। जब वह लड़का उठकर चला गया तो उन्होंने कुछ प्रेम पूर्वक रोष के स्वर में कहा- ‘प्रभो ! आप दूसरों को ही उपदेश देने के लिये हैं, अपने लिये नहीं सोचते कि हमारे आचरण को देखकर कोई क्या समझेगा?
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