श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी151. धन मांगने वाले भृत्य को दण्ड
महाराज ने वह पत्र प्रभु के पास पहुँचा दिया। पत्र को पढ़ते ही प्रभु आश्चर्य चकित हो गये। उनके प्रभाव का इस प्रकार दुरुपयोग किया जाता है, यह सोचकर उन्हें विश्वास के ऊपर रोष आया। उसी समय गोविन्द को बुलाकर प्रभु ने कठोरता के साथ आज्ञा दी- 'गोविन्द ! देखना आज से बाउल विश्वास हमारे यहाँ न आने पावे। वह हमारे और आचार्य के नाम को बदनाम करने वाला है। 'गोविन्द सिर नीचा किये हुए चुपचाप लौट गया। उसने नीचे जाकर ठहरे हुए भक्तों से कहा। भक्तों के द्वारा आचार्य को इस बात का पता लगा। वे जल्दी से प्रभु के पास दौड़े आये और उनके पैर पकड़कर गद्गद कण्ठ से कहने लगे- 'प्रभो ! यह अपराध तो मेरा है। बाउल ने जो भी कुछ किया है, मेरे ही लिये किया है। इसके लिये उसे दण्ड न देकर मुझे दण्ड दीजिये। अपराध के मूल कारण तो हमी हैं। 'महाप्रभु आचार्य की प्रार्थना की उपेक्षा न कर सके। आचार्य के अवतारी होने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी। किन्तु अवतारी होकर क्षुद्र पैसों के लिये विषयी पुरुषों से प्रार्थना की जाय यह अवतारी पुरुषों के लिये महान कलंक की बात है। आवश्यकता पड़ने पर याचना करना पाप नहीं है, किन्तु अवतारप ने की आड़ में द्रव्य मांगना महापाप है, बेचारा बावला बाउल क्या जाने, उस अशिक्षित नौकर को इतनी समझ कहाँ, उसने तो अपनी तरफ से अच्छा ही समझकर यह काम किया था। प्रभु ने अज्ञान में किये हुए उसके अपराध को क्षमा कर दिया और भविष्य में फिर ऐसा कभी न करने के लिये उसे समझा दिया। |