श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी150. छोटे हरिदास को स्त्री-दर्शन का दण्ड
जब स्वरूपगोस्वामी ने समझ लिया कि प्रभु अब किसी की भी न सुनेंगे तो वे जगदानन्द, भगवानाचार्य, गदाधर गोस्वामी आदि दस-पांच भक्तों के साथ छोटे हरिदास के पास गये और उसे समझाने लगे- 'उपवास करके प्राण गँवाने से क्या लाभ? जीओगे तो भगवन्नाम-जाप करोगे, स्थान पर जाकर न सही, जब प्रभु जगन्नाथ जी के दर्शनों को जाया करें तब दूरसे दर्शन कर लिया करो। उनके होकर उनके दरबार में पड़े रहोगे तो कभी-न-कभी वे प्रसन्न हो ही जायँगे। ' कीर्तनिया हरिदास जी की समझ में यह बात आ गयी, उसने भक्तों के आग्रह से अन्न-जल ग्रहण कर लिया। वह नित्यप्रति दर्शनों को मन्दिर जाते समय दूर से दर्शन कर लेता और अपने को अभागा समझता हुआ कैदी की तरह जीवन बिताने लगा। उसे खाना-पीना कुछ भी अच्छा नहीं लगता था, किसी से मिलने की इच्छा नहीं होती थी, गाना-बजाना उसने एकदम छोड़ दिया। सदा वह अपने असद व्यवहार के विषय में ही सोचता रहता। होते-होते उसे संसार से एकदम वैराग्य हो गया। ऐसा प्रभुकृपाशून्य जीवन बीताना उसे भार-सा प्रतीत होने लगा। अब उसे भक्तों के सामने मुख दिखाने में भी लज्जा होने लगी। इसलिये उसने इस जीवन का अन्त करने का दृढ़ निश्चय कर लिया। |