श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी144.श्री प्रकाशानन्द जी का आत्मसमर्पण
इस प्रकार बहुत देर तक बातें होती रहीं। महाराष्ट्रीय सज्जन स्वामी जी से विदा लेकर अपने घर चले गये। दूसरे दिन इस सुखद संवाद को सुनाने के लिये प्रभु के पास आ रहे थे कि उन्हें रास्तें में ही गंगा स्नान करके लौटते हुए प्रभु मिल गये। जल्दी में उन्होंने प्रणाम करके कहा- 'प्रभो! 'प्रभो! महान आश्चर्य की बात! आपकी माया अपार है 'प्रभो! ओहो! जो आपकी इतनी भारी निन्दा किया करते थे; वे वेदान्त-शिरोमणि श्री मत्प्रकाशानन्द अब बालकों की भाँति रो रहे हैं। अब उन्हें वेदान्त चिन्तन, शास्त्रों का पठन-पाठन कुछ भी नहीं भाता है, अब वे निरन्तर श्री चैतन्यचरणों का ही चिन्तन करते हैं।' इस संवाद को सुनते ही प्रभु उछलने लगे और परम प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहने लगे- 'भगवान बड़े दयालु हैं, उन्होंने पूज्यपाद प्रकाशानन्द जी के ऊपर कृपा कर दी। उन्हें प्रेमदान देकर अपना लिया। अहा! उन महापुरुष के चरणों की धूलिको मैं अपने मस्तक पर चढ़ाकर अपने जीवन को कृतार्थ करूँगा। 'इतना कहते-कहते प्रभु बिन्दुमाधव जी के मन्दिर में दर्शन करने गये। भगवान की मनोहर मूर्ति के दर्शनों से प्रभु भावावेश में आकर नृत्य करने लगे। श्री सनातन, चन्द्रशेखर वैद्य, तपन मिश्र आदि भक्त भी प्रभु के साथ ताली बजा-बजाकर नाचने और- हरिहरये नम: कृष्णयादवाय नम:। -इस पद को बड़े ही स्वर के साथ गाने लगे। महाप्रभु ब्रह्मज्ञान शून्य होकर नृत्य कर रहे थे। बहुत-से दर्शनार्थी प्रभु का नृत्य देखनेके लिये एकत्रित हो गये। संकीर्तन की सुमधुर ध्वनि सुनकर शिष्यों के सहित श्री स्वामी प्रकाशानन्द जी भी वहाँ आ उपस्थित हुए और वे भी प्रभु के स्वर में स्वर मिलाकर- |