श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी140. श्री सनातन की कारागृह से मुक्ति और काशी में प्रभु-दर्शन
नम्रता के साथ जेलर ने कहा- 'श्रीमन! इस बात को सभी लोग जानते हैं कि आपने कोई अपराध नहीं किया है, आप अपनी नौकरी को छोड़ना चाहते थे, इसी पर बादशाह ने आपको कैद कर लिया।' श्री सनातन जी ने स्नेह से कहा- 'तुम बता सकते हो, मैं नौकरी क्यों छोड़ना चाहता था?' जेलर ने कहा- 'श्रीमन! मैंने पण्डितों और समझकर आदमियों के मुख से ऐसा सुना है कि आप भजन करना चाहते हैं।' 'भजन करना अच्छा काम है या बुरा, तुम्हारा इस बारे में क्या विचार है?' सनातन जी ने पूछा। इस पर बड़ी ही सरलता के साथ जेलर ने कहा- 'श्रीमन! मैं इस बारे में क्या बताऊँ? हम तो घर-गृहस्थी के झंझटों के कारण पैसे के ऐसे गुलाम बन गये हैं कि जिसने हमें पैदा किया है, उसे एकदम भूल गये हैं। हम इस बारे में कह ही क्या सकते हैं? आप भाग्यवान हैं, जो आप सब कुछ छोड़-छाड़कर ईश्वर का भजन करना चाहते हैं, इससे बढ़कर दूसरा कोई काम और हो ही क्या सकता है?' 'अच्छा, तुम यह बताओ जो लोग भजन करना चाहते हैं, उनकी मदद करना पाप है या पुण्य?' सनातन जी ने धीरे से पूछा। जेलर ने कहा- 'ऐसे आदमियों की जितनी भी जिससे बन सके, मदद करनी चाहिये, इससे बढ़कर पुण्य का काम दूसरा है ही नहीं।' 'तब तुम मुझे इस जेल खाने से निकालने में सहायता दो।' सनातन जी ने चारों ओर देखकर जेलर के कान में कहा। कुछ डरता हुआ और चारों ओर देखता हुआ कम्पित स्वर में धीरे-धीरे जेलर कहने लगा- 'श्रीमन! यह मेरी शक्ति के बाहर की बात है। बादशाह इस बात के सुनते ही मुझे जिन्दा ही गड़वाकर कत्ल करा देगा।' सनातन जी ने धीर से कहा- 'भाई! मैंने मन्त्रीपने में तुम्हारे साथ बड़े-बड़े उपकार किये हैं, तुम इतना भी नहीं कर सकते? मेरे दस हजार रूपये अमुक मोदी के यहाँ रखे हैं, आज ही पत्र लिखकर मैं उन्हें मंगवाकर तुम्हें दे दूँगा। तुम बाल-बच्चेदार आदमी हो; उनसे तुम्हारा काम चलेगा।' दस हजार रूपयों का नाम सुनते ही पैसों को ही पैसों की ही सर्वस्व समझने वाला वह तीस रूपये महीने का जेलर कर्तव्य विमूढ़ हो गया। उसने दस हजार रूपये अपने जीवन में कभी देखे भी नहीं थे। आज थोड़ा-सा साहस करने में ही इकट्ठे दस हजार रूपये मिल जायँगे, इसी को सोचकर और हर्ष के भावों को दबाते हुए विवशता के स्वर में कहने लगा- 'श्रीमन! रूपयों की क्या बात है, मैं तो पहले भी आपका गुलाम था अब भी गुलाम हूँ, मगर बादशाह पूछेंगे तो मैं क्या जवाब दूँगा?' |