श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी136. श्री रूप को प्रयाग में महाप्रभु के दर्शन
महाप्रभु के बैठ जाने पर दोनों भाई प्रभु के पैरों को पकड़े हुए बैठे। प्रभु ने अनूप का परिचय पूछा और सनातन जी के समाचार जानने चाहे। श्री रूप जी ने सभी वृत्तान्त सुनाकर कहा- 'प्रभो! वे श्री चरणों के दर्शन के लिये कारावास की काली कोठरी में पड़े हुए तड़प रहे होंगे।' प्रभु ने हंसते हुए कहा- 'अब वे कारावास में कहाँ, अब तो वे वहाँ से छूट गये होंगे। भगवान करेंगे तो शीघ्र ही तुम दोनों भाइयों की भेंट होगी। अब तुम कुछ काल यहीं मेरे पास रहो' यह कहकर प्रभु ने अपने पास ही इन दोनों भाइयों को रहने के लिये स्थान दे दिया। बलभद्र भट्टाचार्य ने इन दोनों भाइयों को भोजन कराया और प्रभु का प्रसादी-अन्न भी इन्हें दिया। इस प्रकार ये दोनों ही भाई आनन्द के साथ प्रभु की सेवा में रहने लगे। |