श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी135. पठानों को प्रेम-दान और प्रयाग में प्रत्यागमन
प्रभु भी गंगा जी के किनारे के ग्रामों में हरिनाम-संकीर्तन का प्रचार करते हुए और लोगों को प्रेमानन्द में प्लावित करते हुए प्रयाग पहुँचे तथा वहाँ पर पुनः यमुना जी के दर्शन करके प्रेम में उन्मत्त होकर नृत्य करने लगे। प्रयागराज में संगम पर वैसे ही सदा मेला-सा लगा रहता है किन्तु प्रभु के आने से उस मेले की शोभा और भी अधिक बढ़ गयी। हजारों आदमी आ-आकर प्रेम में विभोर होकर प्रभु के साथ नाचने लगते और नाचते-नाचते बेहोश होकर भूमि पर गिर पड़ते। इस प्रकार प्रभु के प्रयाग में आने से वहाँ पर भक्ति की एक प्रकार से बाढ़-सी आ गयी। सभी प्रभु प्रदत्त प्रेमासव का पान करके पागल-से बन गये और अपने-आपको भूलकर सदा- श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव। भगवान के इन सुमधुर नामों से आकाश मण्डल को गुंजाने लगे। |