श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी134. श्री वृन्दावन आदि तीर्थों के दर्शन
कत्ल का नाम सुनते ही बंगाली भट्टाचार्य महाशय तो सिटपिटा गये। बंगालियों की ढीली धोती वैसे ही मशूहर है, फिर परदेश में तो अच्छे-अच्छे साहसियों की सिटल्ली भूल जाती है। बेचारे भट्टाचार्य थर-थर काँपने लगे। इस पर उस मथुरा के साधु ब्राह्मण ने साहस करके कहा- 'आपलोग हमारे ऊपर व्यर्थ ही संदेह करते हैं। हम यहीं के तो हैं। हमें आप यहाँ के शासनकर्ता के पास ले चलिये। वहाँ हमारे बहुत-से यजमान और शिष्य हैं। वे सब हमें जानते हैं। हम कभी ऐसा काम कर सकते हैं ?' ब्राह्मण की इस बात से उन लोगों को सन्तोष नहीं हुआ। प्रभु का तीसरा साथी राजपूत था। उसका नाम था कृष्णदास। इस घटना से कृष्णदास के रजपूती खून में जोश आ गया। वह कड़क कर बोला- 'मालूम पड़ता है, अभी तुम लोगों ने हमें पहचाना नहीं। हम राजपूत हैं, राजपूत। शस्त्र लेकर युद्ध में लड़ना ही हमारा नित्य का काम हैं। अभी मेरे आवाज देने पर सैकड़ों योद्धा यहाँ एकत्रित हो जायंगे और बात-की-बात में तुम्हें अपने इन बड़े वचनों का मजा मिल जायेगा।' इस बात से मन में कुछ भयभीत-से होकर वे सवार अपने पीर साहब की ओर देखने लगे। पीर जी ने कुछ गम्भीरता के साथ शांतस्वर में पूछा- 'हम यह जानना चाहते हैं कि ये इतने सुन्दर तेजस्वी और स्वस्थ शरीर के युवक संन्यासी बेहोश क्यों पड़े हैं?' कृष्णदास जी ने कहा- 'ये हमारे गुरु हैं, इन्हें कभी-कभी मिरगी का दौरा हो जाता है, इस समय ये उसी के दौरे से बेहोश पड़े हैं।' कृष्णदास इतना कह ही रहे थे कि प्रभु उसी समय चैतन्यता लाभ करके उठकर खड़े हो गये और जोरों से प्रेम में गद्गद होकर नृत्य करने लगे। तब राजकुमार बिलजी खाँ ने पूछा- 'साधू बाबा! आप अब तक बेहोश क्यों पड़े थे? मालूम पड़ता है, आपके इन साथियों ने आपको भूल से धतूरा खिला दिया है, उसी से आप बेहोश थे। अपने रूपये-पैसे देख लीजिये। इन धतूरा खिलाने वाले साथियों को आप जो कहेंगे, वही उचित दण्ड दिया जायेगा।' प्रभु ने अत्यन्त ही सरलता के साथ कहा- 'भाइयो! ये मेरे साथी मेरे दूसरे शरीर ही हैं। इन्हीं की कृपा से तो मुझे व्रजमण्डल के समस्त तीर्थों के दर्शन हो सके हैं। मैं तो भिक्षुक संन्यासी हूँ, कामिनी-कांचन का कभी स्पर्श नहीं करता। मुझे धतूरा देने से किसी को क्या लाभ हो सकता है? आप लोग घबड़ाये नहीं, मुझे कभी-कभी मिरगी का दौरा हो उठता है, उसी के दौरे में मैं बेहोश हो गया था और कोई भी कारण नहीं है।' प्रभु के ऐसा कहने पर उन लोगों ने सभी साथियों के बन्धन खोल दिये। |