श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी134. श्री वृन्दावन आदि तीर्थों के दर्शन
जिस स्थान पर भगवान ने अरिष्टासुर का वध किया था, वहाँ 'आरिठ' नामका एक ग्राम है, महाप्रभु ने वहाँ आकर लोगों से पूछा कि 'यहाँ पर राधाकुण्ड का पुराणों में उल्लेख मिलता है, वह राधाकुण्ड कहाँ है?' प्रभु के इस प्रश्न का उत्तर ग्रामवासी नहीं दे सके। उनमें से किसी को भी राधाकुण्ड का पता नहीं था। प्रभु का साथी ब्राह्मण भी राधाकुण्ड से अनभिज्ञ था, तब प्रभु ने स्वयं ध्यानमग्न होकर राधाकुण्ड जाना और दो खेतों के बीच में भरे हुए थोड़े- से जल में स्नान करके आपने राधाकुण्ड का माहात्म्य वर्णन किया। उस दिन से वही राधाकुण्ड के नाम से प्रसिद्ध हो गया। राधाकुण्ड को प्रकट कर के प्रभु कुसुमसरोवर पर आये। वहाँ श्रीगोवर्धन-पर्वत के दर्शन करके आप पुलकित हो उठे। भूमि में लोटकर आपने गिरिराज को साष्टांग प्रणाम किया और उस की छोटी-छोटी शिलाओं को लेकर हृदय से चिपटाने लगे। गोवर्धन भगवान का अभिन्न विग्रह है। शास्त्रों में इसे भगवान का शरीर ही बताया गया है। गोवर्धन में प्रभु ने हरिदेव जी के दर्शन किये, फिर ब्रह्मकुण्ड में स्नान कर के वहीं भिक्षा की। गोवर्धन-पर्वत के ऊपर गोपाल भगवान का मन्दिर था, जिन्हें श्रीमन्माधवेन्द्रपुरी ने प्रकट किया था। उनके दर्शनों की प्रभु को इच्छा हुई, किन्तु प्रभु तो गिरिराज के ऊपर चढ़ना ही नहीं चाहते। वे सोचने लगे कि गोपालभगवान के दर्शन कैसे हों। सर्वान्तर्यामी भगवान अपने भक्त की इच्छा को जान गये। वे तो भाव के भूखे हैं, भक्तों के हाथ तो वे बिना कोड़ी-दाम के ही बिक जाते हैं, फिर पर्वत से नीचे उतरना कौन-सी बात है। उन दिनों गोपालभगवान की स्थिति अस्थिर थी। मुसलमानों के उत्पातों के कारण वे इधर- से-उधर घूमते थे। कभी किसी कुंज में ही पूजा हो रही है, तो कभी किसी ग्राम में ही विराजमान हैं। वे तो व्रजवासियों के सखा हैं। ईश्वर या परमात्मा होंगे तो शिव, ब्रह्मा अथवा लक्ष्मी जी के लिये होंगे। व्रज में वे वही पुराने 'कनुआ' हैं। जब व्रजवासियों को यवनों से भय है, तो उन्हें भी होना चाहिये, इसलिये व्रजवासी ग्वाल-बाल जहाँ भी जाते वहीं गोपाल को साथ ले जाते। उन दिनों एक तुर्क- सेना मूर्तियों को विध्वंस करती हुई आ रही थी, व्रजवासी राजपूत इसी भय से अन्नकूट नामक ग्राम से गोपाल जी को 'गाठौली' नामक ग्राम में ले आये और वहीं गुप-चुप चार-पांच दिनों तक उन की सेवा-पूजा करते रहे। गाठौली ग्राम गिरिराज के नीचे है, प्रभु ने जब सुना कि गोपाल भगवान तो मानो मुझे ही दर्शन देने के निमित्त पर्वत से उतरकर गाठौली में आ विराजे हैं, तब तो प्रभु के आनन्द की सीमा नहीं रहीं। |