श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी127. प्रभु के वृन्दावन जाने से भक्तों को विरह
भट्टाचार्य अवाक रह गये। उन्हें कुछ कहने को ही अवसर नहीं मिला। उन्होंने दुःखित चित्त में प्रभु के चरणों में प्रणाम किया। प्रभु उन्हें प्रेमपूर्वक गले से लगाकर आगे के लिये चल दिये और ये खड़े-खड़े प्रभु की ओर देखते हुए रोते ही रहे। अब महाप्रभु के साथ परमानन्दपुरी, स्वरूपगोस्वामी, जगदानन्द, मुकुन्द, गोविन्द, काशीश्वर, हरिदास आदि सभी भक्त गौड़ जाने की इच्छा से चले। याजपुर में पहुँचकर प्रभु ने उन दोनों राजमन्त्रियों को भी कह-सुनकर लौटा दिया। उस दिन महाप्रभु रात्रिभर रामानन्द जी से कृष्ण-कथा-कीर्तन करते रहे। रेमुना पहुँचकर राय रामानन्द जी को भी प्रभु ने लौट जाने की आज्ञा दी। वे दुःखित मन से रोते-रोते प्रभु की पदधूलि को मस्तक पर चढ़ाकर पीछे को लौटे और महाप्रभु रेमुना को पार करके आगे के लिये चल दिये। महाप्रभु जिस ग्राम में भी पहुँचते, वहीं महाराज प्रतापरुद्र जी की ओर से प्रभु के स्वागत के निमित्त बहुत-से आदमी मिलते। वे महाप्रभु का खूब सत्कार करते। स्थान-स्थान पर जगन्नाथ जी के प्रसाद का पहले से ही प्रबन्ध था। इस प्रकार रास्ते में कृष्ण-कीर्तन करते हुए और अपने शुभ दर्शनों से ग्रामवासी तथा राजकर्मचारियों को कृतार्थ करते हुए प्रभु उड़ीसा-राज्य की सीमा पर पहुँच गये। |