श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी123. नित्यानन्द जी का गोड़-देश में भगवन्नाम-वितरण
राघव पण्डित स्वयं महाप्रभु के अनन्य भक्त थे, उन्होंने साथियोंसहित नित्यानन्द जी का खूब सत्कार किया और उनके साथ प्रचार के लिये भी बाहर ग्रामों में जाने लगे। नित्यानन्द जी वहाँ तीन महीने ठहरकर लोगों को श्रीकृष्ण-संकीर्तन का उपदेश करते रहे। वे अपने साथियों के सहित गंगा जी के किनारे-किनारे गाँवों में जाते और वहाँ सभी से श्रीकृष्ण-कीर्तन करने के लिए लिए कहते। ये विशेष पुस्तकी विद्या तो पढ़े नही थे, सीधी-सादी भाषा में सरलतापूर्वक ग्रामीण लोगों को समझाते, इनके समझाने का लोगों पर बड़ा ही अधिक असर होता और वे उसी दिन से कीर्तन करने लग जाते। इसी बीच में आप अम्बिकानगरमें भी संकीर्तन का प्रचार करने गये थे, वहाँ सूर्यदास पण्डित ने खूब आदर-सत्कार किया। ये भक्तों के सहित उनके घर पर रहे। सूर्यदास का समस्त परिवार नित्यानन्द जी के चरणों में बड़ी भारी श्रद्धा रखने लगा। इस प्रकार पानीहाटी में भगवन्नाम और भगवद्भक्ति की आनन्दमय और प्रेममय धारा बहाकर नित्यानन्द जी अपने परिकर के सहित एड़दह में गदाधरदास के घर ठहरे। इसी गांव में एक मुसलमान क़ाज़ी संकीर्तन का बड़ा भारी विरोधी था। नित्यानन्द जी के प्रभाव से वह भी स्वयं संकीर्तन में आकर नाचने लगा। इससे इनका प्रभाव और भी अधिक बढ़ गया। लोग इनके श्रीचरण में अनन्य श्रद्धा रखने लगे। चारों ओर 'श्रीकृष्ण-चैतन्य की जय,' 'नित्यानन्द की जय,' 'गौरनिताई की जय' यही ध्वनि सुनायी देने लगी। एड़दह से चलकर नित्यानन्द जी खड़दह में पहुँचे। वहाँ चैतन्यदास और पुरन्दर पण्डित इन दोनों भक्तों ने इनका खूब आदर-सत्कार किया और इनके प्रचार-कार्य में योगदान दिया। इसी प्रकार लोगों को प्रभुप्रेम में प्लावित बनाते हुए महामहिम नित्यानन्द जी सप्तग्रा में पहुँचे। |