श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी122. सार्वभौमके घर भिक्षा और अमोघ-उद्धार
इस समाचारको सुनते ही कुछ प्रसन्नता प्रकट करते हुए सार्वभौमने कहा-'चलो, अच्छा ही हुआ। 'अत्युग्रपापपुण्यानामिहैव फलमश्नुते' अत्यन्त उग्र पाप-पुण्योंका फल यहीं इस पृथ्वीपर मिल जाता है। अमोघने जैसा किया वैसा ही उसका प्रत्यक्ष फल पा लिया।' लोग अमोघको उठाकर सार्वभौमके घर ले आये। आचार्य गोपीनाथने यह संवाद जाकर प्रभुको सुनाया। सुनते ही महाप्रभु सार्वभौमके घर जल्दीसे दौड़े आये। उन्होंने आकर देखा, अमोघ बेसुध हुआ पलंगपर पड़ा है। उसके जीवनकी किसीको भी आशा नहीं है। तब तो महाप्रभु उसके पलंगके पास गये और उसके हृदयपर हाथ रखकर कहने लगे-'अहा, बच्चोंका हृदय कितना कोमल होता है, फिर कुलीन ब्राह्मणोंका तो कहना ही क्या ? ब्राह्मणोंका स्वच्छ निर्मल अन्तःकरण प्रभुके निवासके ही योग्य होता है। न जाने यह राक्षस मात्सर्य इस अमोघके अन्तःकरण में कहांसे घुस गया।' प्रभु ने थोड़ी देर चुप रहकर फिर कहा-'ओ दुष्ट मात्सर्य! सार्वभौम भट्टाचार्यके घरमें रहनेवाले अमोघके अन्तःकरणमें प्रवेश करनेका तुझे साहस कैसे हुआ ? सार्वभौमके भयसे तू अभी भाग जा।' इतना कहकर प्रभु फिर अमोघको सम्बोधन करके कहने लगे-'अमोघ! तेरे हृदयमेंसे चाण्डाल मात्सर्य भाग गया, अब तू जल्दीसे उठकर श्रीकृष्णके मधुर नामोंको उच्चारण कर।' इतना सुनते ही अमोघ सोते हुए मनुष्यकी भाँति जल्दीसे उठकर खड़ा हो गया और 'श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे! हे नाथ नारायण वासुदेव!!' आदि भगवान् के नामोंका जोरोंसे उच्चारण करता हुआ नृत्य करने लगा। उसकी इस अद्भुत परिवर्तित दशाको देखकर सभी आश्चर्यचकित होकर प्रभुके श्रीमुखकी ओर निहारने लगे और इसे महाप्रभुका ही परम प्रसाद समझने लगे। अमोघने भी प्रभुके पैरोंमें पड़कर उनसे अपने पूर्वकृत अपराधके लिये क्षमा-याचना की। महाप्रभुने उसे गले लगाकर सान्त्वना प्रदान की। अमोघको अपने कुकृत्यपर बड़ा ही पश्चात्ताप होने लगा। वह अपने अपराधको स्मरण करके दोनों हाथोंसे अपने ही गालोंपर तमाचे मारने लगा। इससे उसके दोनों गाल सूज गये। तब आचार्य गोपीनाथने उसे इस कामसे निवारण किया। महाप्रभुने उसे कृष्ण-कीर्तनका उपदेश दिया। उसी दिनसे अमोघ परम भागवत वैष्णव बन गया और उसकी गणना प्रभुके अन्तरंग भक्तोंमें होने लगी। तब महाप्रभुने गोपीनाथाचार्यको आज्ञा दी कि तुम स्वयं जाकर भट्टाचार्य और उनकी पत्नीको भोजन कराओ। प्रभुकी आज्ञा पाकर आचार्य सार्वभौमको साथ लेकर घर गये और उन्हें भोजन कराया। प्रभुके कहनेपर सार्वभौमने अमोघको क्षमा कर दिया और उस दिनसे बहुत अधिक प्यार करने लगे। अमोघ भी महाप्रभुके चरणोंमें अधिकाधिक प्रीति करने लगा। |