श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी118. श्री जगन्नाथ जी की रथ यात्रा
श्रद्धावालू और अर्धासनी देवी के बीच में बालगण्डि नामक एक स्थान है। वहाँ पर भोग लगने का नियम है। उस स्थान पर जगन्नाथ जी करोड़ों प्रकार की वस्तुओं का रसास्वादन लेते हैं। राजा प्रजा, धनी गरीब, स्त्री पुरुष जो भी वहाँ होते हैं, सभी अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार भगवान का भोग लगाते हैं। जैसी जिसकी इच्छा हो, जो जिस चीज का भी लगा सकता है, उसी चीज का लगाता है। मन्दिर की भाँति सिद्ध अन्न का भोग नहीं लगाता। रास्ते के दायें, बायें, आगे, पीछे वाटिका में जहाँ भी जिसे स्थान मिलता है वहीं भोग रख देता है। उस समय लोगों की बड़ी भारी भीड़ हो जाती है। उसे नियन्त्रण में रखना महा कठिन हो जाता है। महाप्रभु भीड़ को देखकर समीप के ही बगीचे में विश्राम करने के लिये चले गये। भक्तवृन्द भी प्रभु के पीछे पीछे चले। वाटिका में जाकर प्रभु एक सुन्दर से वृक्ष की शीतल छाया में पृथ्वी पर लेट गये। मन्द-सुगन्धित-शीतल पवन के स्पर्श से प्रभु को अत्यन्त ही आनन्द हुआ। वे सुखपूर्वक एक पैर पर दूसरे पैर को रखे हुए लेटे थे। उस समय थकान के कारण अपनी कोमल भुजा पर सिर रखकर लेटे हुए महाप्रभु बड़े ही भले मालूम पड़ते थे। वाटिका के प्रत्येक वृक्ष के नीचे एक एक, दो दो भक्त पड़े हुए संकीर्तन की थकान को मिटा रहे थे। |