श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी117. गुण्टिचा (उद्यान मन्दिर) मार्जन
भट्टाचार्य ने प्रसन्नता के स्वर में कहा- ‘आचार्य महाशय! आपकी कृपा से मेरे चौके-चूल्हे पर चौका फिर गया। आपने मेरे सभी पापों को धुला दिया।’ इतने में ही महाप्रभु कहने लगे- ‘भट्टाचार्य के ऊपर अब भगवान की कृपा हो गयी है और इनकी संगति से हम लोगों के हृदय में भी कुछ कुछ भक्ति का संचार होने लगा है।’ इतना सुनते ही भट्टाचार्य जल्दी से कहने लगे- ‘भगवत्कृपा न होती तो भगवान इस अभिमानी को अपनी चरण सेवा का सौभाग्य ही कैसे प्रदान करते? भगवत्कृपा का यह प्रत्यक्ष प्रमाण है कि साक्षात भगवान अपने समीप बिठाकर भोजन करा रहे हैं।’ इस प्रकार परस्पर एक दूसरे की गुप्त प्रशंसा करने लगे। भोजन के अनन्तर सभी हरिध्वनि करते हुए उठे। महाप्रभु का उच्छिष्ट प्रसाद गोविन्द ने हरिदास जी को दिया और भक्तों ने भी थोड़ा थोड़ा बाँट दिया। इसके अनन्तर महाप्रभु ने स्वयं अपने करकमलों से सभी भक्तों को माला प्रदान की और उनके मस्तकों पर चन्दन लगाया। इस प्रकार उस दिन इस अदभुत लीला को करके भक्तों के सहित प्रभु अपने स्थान पर आ गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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