श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी112. प्रेम रस लोलुप भ्रमर भक्तों का आगमन
भारती जी ने कहा- ‘विधि-निषेध तो साधारण लोगों के लिये हैं। आपका गुरु हो ही कौन सकता है? आप स्वयं ही जगत के गुरु हैं।’ इस प्रकार परस्पर एक दूसरे की स्तुति करने लगे। भारती जी वहीं महाप्रभु के समीप ही रहने लगे। प्रभु ने उनकी भिक्षा आदि की सभी व्यवस्था कर दी। इसके थोड़े ही दिनों बाद श्रीईश्वरपुरी जी के शिष्य काशीश्वर गोस्वामी भी तीर्थ यात्रा करके महाप्रभु के समीप आ गये। वे शरीर से हृष्ट पुष्ट तथा बलवान थे। प्रभु के प्रति उनका अत्यधिक स्नेह था। उनको भी प्रभु ने अपने समीप ही रखा। इस प्रकार चारों ओर से भक्त आ आकर प्रभु की सेवा में उपस्थित होने लगे। श्रीजगन्नाथ जी के मन्दिर में नित्यप्रति हजारों आदमियों की भीड़ लगी रहती है। पर्व के दिनों में तो लोगों को दर्शन मिलने दुर्लभ हो जाते हैं। महाप्रभु जब दर्शनों के लिये जाते थे, तब काशीश्वर आगे-आगे चलकर भीड़ को हटाते जाते। महाप्रभु ब्रह्मानन्द भारती, परमानन्द पुरी,नित्यानन्द जी, जगदानन्द जी, स्वरूपदामोदर तथा अन्य सभी भक्तों को साथ लेकर दर्शनों के लिये जाया करते थे। उस समय की उनकी शोभा अपूर्व ही होती थीं। प्रभु अपने सम्पूर्ण परिकर के मध्य में नृत्य करते हुए बड़े ही सुन्दर मालूम होते थे। दर्शनार्थी श्रीजगन्नाथ जी के दर्शनों को भूलकर इन्हीं के दर्शन करते रह जाते थे। |