श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी13. बाल्य-भाव
आपने कहा- ‘अम्मा! स्थान का क्या अपवित्र ओर क्या पवित्र? स्थान तो सभी एक-से हैं। हाँ, जो स्थान हरि-सेवा-पूजा से हीन हो वहाँ बैठना ठीक नहीं। इन हाँड़ियों में तो मैंने भगवान का प्रसाद बनाया है। भला, फिर ये हाँड़ियाँ अपवित्र कैसे हुई?’ माता ने डाँटकर कहा- ‘बहुत ज्ञान मत छाँट, जल्दी से उठकर स्नान कर ले।’ निमाई भला कब उठने वाले थे? वे तो वहीं डटे रहे और फिर वही अपना पुराना राग अलापने लगे। माता ने जब देखा वह किसी भी तरह नहीं उठता, तो स्वयं जाकर इनका हाथ पकड़कर उठा लायीं और घर में आकर इन्हें स्नान कराया और स्वयं स्नान किया। इसी प्रकार से सभी बालोचित लीलाएँ करते। कभी किसी कुत्ते के बच्चे को पकड़ लाते और उसे दूध-भात खिलाते। दिनभर उसे बाँधे रखते। माता यदि उसे भगा देती तो खूब रोते। कभी पक्षियों को पकड़ने को दौड़ते ओर कभी गौ के छोटे बच्चे के साथ खेलते और उससे धीरे-धीरे न जाने क्या-क्या बातें करते। सबके घरों में बिना रोक-टोक चले जाते। कोई कहती- ‘निमाई! तुझे हम सन्देश दें, जरा नाच तो दे।’ तब आप कहते- ‘पहले सन्देश (मिठाई) दो, तब नाचेंगे।’ वे सन्देश-लड्डू-पेड़े इन्हें दे देतीं। ये उसी समय कुछ मुँह में भर लेते, शेष को हाथ में लेकर ऊपर हाथ उठा-उठाकर खूब नाचते। इस प्रकार ये घर-घर जाकर खूब नाच दिखाते और खाने के लिये खूब माल पाते। स्त्रियाँ इन्हें बहुत प्यार करतीं। कोई केला देती, कोई मेवा देती, कोई मिठाई देती। ये सबसे ले लेते, स्वयं खाते ओर अपने साथियों को बाँट देते। इस प्रकार ये सभी के मन को अपनी ओर आकर्षित करने लगे और नर-नारियों को परम सुख देने लगे। एक दिन ये बाहर से दौड़े-दौड़े आये ओर जल्दी से माता से बोले- ‘अम्मा! अम्मा! बड़ी भूख लग रही है, कुछ खाने के लिये हो तो दे।’ माता ने कहा- ‘बेटा! बैठ जा। अभी दूध-चिउरा लाती हूँ, उन्हें तब तक खा ले फिर झट से भात बनाऊँगी।’ यह कहर माता ने भीतर से लाकर एक कटोरे में दूध-चिउरा इन्हें दिया। माता तो देकर भीतर चली गयीं।, ये दूध-चिउरा न खाकर पास में पड़ी मिट्टी को खाने लगे। माता ने जब आकर देखा कि निमाई तो मिट्टी खा रहा है, तब वे जल्दी से कहने लगीं- ‘अरे निमाई! तू यह क्या कर रहा है? मिट्टी क्यों खाता है?’ |