श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी94. श्रीजगन्नाथ जी के दर्शन से मूर्छा
आचार्य गोपीनाथ ने कहा- ‘ठीक है, मैं आप सबको सार्वभौम के घर ले चलूँगा। चलिये पहले भगवान के दर्शन तो कर आइये।’ मुकुन्ददत्त ने कहा-‘पहले हम महाप्रभु का पूर्णरीत्या समाचार जान लें, तब स्वस्थ होकर निश्चिन्ततापूर्वक दर्शन करेंगे। पहले आप हमें सार्वभौम महाशय के ही यहाँ ले चलिये।’ मुकुन्ददत्त के मुख से ऐसी बात सुनकर आचार्य गोपीनाथ जी बड़े प्रसन्न हुए और उनके साथ सार्वभौम के घर की ओर चलने लगे। नित्यानन्द जी का परिचय पाकर आचार्य ने अवधूत समझकर उनके चरणों में प्रणाम किया और प्रभु के सम्बन्ध की ही बातें करते हुए वे पाँचों ही सार्वभौम के घर पहुँचे। इन सब लोगों ने जाकर प्रभु को चेतनाशून्य अवस्था में ही पाया। भक्तों ने चारों ओर से प्रभु को घेरकर संकीर्तन आरम्भ कर दिया। संकीर्तन की सुमधुर ध्वनि कानों में पड़ते ही प्रभु हुंकार मारकर बैठे गये। भक्तिभाव से पुत्र और स्त्री के सहित समीप में बैठकर शुश्रूषा करने वाले सार्वभौम तथा अन्य सभी उपस्थित पुरुषों को प्रभु के उठने से बड़ी भारी प्रसन्नता हुई। सभी के मुरझाये हुए चेहरों पर हलकी-सी प्रसन्नता की लालिमा दिखायी देने लगी। संकीर्तन की ध्वनि से सार्वभौम का वह भव्य गूंजने लगा। प्रभु के कुछ-कुछ प्रकृतिस्थ होने पर सार्वभौम की सम्मति से उनके पुत्र चन्दनेश्वर के साथ नित्यानन्द प्रभृति सभी भक्त श्रीजगन्नाथ जी के दर्शनों को चले गये। वहाँ जाकर उन्होंने भक्तिभाव सहित श्री सुभद्रा तथा बलदेव जी के सहित जगन्नाथ भगवान के दर्शन किये। पुजारी ने प्रसादी, चन्दन तथा माला इन सभी भक्तों के लिये दिया। उसे ग्रहण करके वे लोग अपने सौभाग्य की सराहना करने लगे। पाठकों ने सार्वभौम भट्टाचार्य का नाम तो पहले ही सुन लिया है, अब उनका संक्षिप्त परिचय दे देना आवश्यक प्रतीत होता है। सार्वभौम महाशय अपने समय के उस प्रान्त में अद्वितीय विद्वान तथा नैयायिक समझे जाते थे। उनके शास्त्रज्ञान की चारों ओर ख्याति थी। इतना सब होने पर भी प्रभु के समागम के पूर्व उनका जीवन भक्ति-विहीन ही था। उनकी अंदर छिपी हुई महान भावुकता तब तक प्रस्फुटित नहीं हुई थी, वह चन्द्रकान्त मणि में छिपे हुए जल की भाँति अव्यक्तभाव से ही स्थित थे। गौरचन्द्र की सुखद शीतल किरणों का संसर्ग पाते ही वह सहसा द्रवित होकर बाहर टपकने लगी और उसी के कारण भट्टाचार्य सार्वभौम का नीरस जीवन सरस बन गया और वे महानन्द सागर में सदा किलो लें करते हुए अलौकिक रस का सुखास्वादन करते हुए अपने जीवन को बिताने लगे। |