श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी92. श्रीसाक्षिगोपाल
इनकी महिमा बड़ी अपार है, एक बार उड़ीसा-देश की महारानी इनके दर्शन के लिये पधारीं। इनकी मनमोहिनी बाँकी-झाँकी करके महारानी मुग्ध हो गयीं। उनकी इच्छा हुई कि ‘यदि भगवान की नाक छिदी हुई होती तो मैं अपने नाक का बहूमुल्य मोती भगवान को पहनाती।’ दूसरे ही दिन महारानी को स्वप्न हुआ मानो साक्षिगोपाल भगवान सामने खड़े हुए कह रहे हैं- ‘महारानी ! हम तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करेंगे। पुजारियों को पता नहीं कि हमारी छिदी हुई है। कल तुम ध्यानपूर्वक दिखवाना, हमारी नाक में छिद्र हैं। तुम सहर्ष अपना मोती पहनाकर अपनी इच्छा पूर्ण कर सकती हो।’ प्रात:काल उठते ही महारानी ने यह वृतान्त महाराज से कहा। महाराज ने उसी समय पुजारियों से भगवान की नाक दिखवायी। सचमुच उसमें छिद्र था। तब महारानी ने बड़े ही प्रेम से अपना बहूमुल्य मोती भगवान की नाक में पहनाया। इतना कहकर नित्यानन्द जी चुप हो गये। इस कथा को सुनकर प्रभु प्रेम में गदगद हो गये और साक्षिगोपाल की मनमोहिनी मूर्ति का ध्यान करते-करते ही वह रात्रि प्रभु ने वहीं बितायी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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