श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी85. शान्तिपुर में अद्वैताचार्य के घर
उन सभी प्रभु के भक्तों के दिये हुए अभिशाप को मैं किस प्रकार सहन कर सकूँगा। इससे तो यही उत्तम है कि मैं गंगा जी में कूदकर अपने प्राणों को गँवा दूँ। यह सोचकर वे जल्दी से गंगा-किनारे पहुँचे और गंगा जी में कूदने के लिये उद्यत हुए। उसी समय उन्हें प्रभु की बातों का स्मरण हो आया। ‘प्रभु ने माता के लिये और भक्तों के लिये बहुत-बहुत करके प्रेम-संदेश भेजा है, उनके संदेश को न पहुँचाने से मुझे पाप लगेगा। मैं प्रभु के सम्मुख कृतघ्न कहलाऊँगा। कौन जाने प्रभु लौटकर आते ही हों। मेरी दायीं भुजा फड़क रही है। दायीं आँख लहक रही है, इससे मेरे हृदय में इस बात का विश्वास-सा हो रहा है कि प्रभु अवश्य लौटकर आयेंगे और वे भक्तों ये मिलकर ही जहाँ जाना चाहेंगे जायँगे।’ इन विचारों के मन में आते ही उन्होंने गंगा जी में कूदकर आत्माघात करने का अपना विचार त्याग दिया और वहीं गंगा जी की रेती में प्रभु का चिन्तन करते हुए बैठ गये। उन्होंने मन में स्थिर किया कि ‘खूब रात्रि होने पर घर जाऊँगा। तब तक सब लोग सो जायंगे और मैं चुपके से अपने घर में जाकर छिप रहूँगा। मेरे नवद्वीप आने का किसी को पता ही न चलेगा।’ इसीलिये गंगा जी की बालुका में अकेले बैठे-ही-बैठे उन्होंने सम्पूर्ण दिन बिता दिया। खूब अन्धकार होने पर वे गंगा जी के पार हुए और लोगों से आँख बचाकर अपने घर पहुँचे। घर पहुँचते ही नगर भर में इनके लौट आने का समाचार बात-की-बात में बिजली की तरह फैल गया। जो भी सुनता वही इनके पास दौड़ा आता और आते ही प्रभु के सम्बन्ध में पूछता। ये सबको धैर्य बताते हुए कहते- ‘हाँ, प्रभु शीघ्र ही लौट कर आयेंगे।’ इतने में ही पुत्र के समाचारों के लिये उत्सुक हुई वृद्धा माता अपनी पुत्रवधू को साथ लिये हुए आचार्यरत्न के घर आ पहुँची। जिस दिन से उनका प्यारा निमाई घर छोड़कर गया है, उसी दिन से माता के अपने मुख में अन्न का दाना तक नहीं दिया है। उसकी दोनों आँखें निरन्तर रोते रहने के कारण सूज गयी हैं, गला बैठ गया है, सम्पूर्ण शरीर शक्तिहीन हो गया है, उठकर बैठने की भी शक्ति नहीं रही है; किन्तु चन्द्रशेखर आचार्य के आगमन का समाचार सुनते ही न जाने माता के शरीर में कहाँ से बल आ गया, वह दौड़ी हुई आचार्य के घर आयी। विष्णुप्रिया जी भी उसका वस्त्र पकडे़ पीछे-पीछे रोती हुई आ रही थीं। |