श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी84. राढ़-देश में उन्मत्त-भ्रमण
माता! तुम्हीं आदि-शक्ति हो, तुम्हीं ब्रह्माणी हो, तुम्हीं रुद्राणी हो और तुम्हीं साक्षात लक्ष्मी हो। देवाधिदेव महादेव ने तुम्हें अपने सिर पर धारण किया हैं, तुम भगवान के चरणकमलों से उत्पन्न हुई हो। जननी! तुम्हारे चरणों में हमारा कोटि-कोटि प्रणाम है। मंगलमयी माता! हमारा कल्याण करो।’ इस प्रकार प्रभु ने गंगाजी की स्तुति करके उनकी रेणु को सिर पर चढा़या और माता के पावन जल से आचमन किया। सभी ने आनन्द के सहित गंगा जी में घुसकर स्नान किया और रात्रि में पास के एक छोटे-से गांव में किसी ब्राह्मण के यहाँ निवास किया। प्रात:काल प्रभु ने नित्यानन्द जी से कहा- ‘श्रीपाद! आप नवद्वीप में जाकर शचीमाता को और अन्यान्य भक्तों को सूचित कर दें कि मैं यहाँ आ गया हूँ। आप नवद्वीप जायँ, तब तक हम अद्वैताचार्य जी के दर्शनों के लिये शान्तिपुर चलते हैं। वहीं सबसे भेंट करेंगे। आप शीघ्र जाइये। विलम्ब करने से काम न चलेगा।’ प्रभु की आज्ञा शिरोधार्य करके नित्यानन्द जी तो गंगा पार करके नवद्वीप की ओर गये और प्रभु गंगा जी के किनारे-किनारे शान्तिपुर के इस पार हरिदास जी के आश्रम में फुलिया नामक ग्राम में आकर ठहर गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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