श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी82. संन्यास-दीक्षा
इस प्रकार थोड़ी देर ही प्रभु का संसर्ग होने से वह महाभागवत नापित सदा के लिये अमर बन गया। आज भी कटवा के निकट ‘मधुमोदक’ नाम से उन मुडे़ हुए केशों की और उस परम भाग्यशाली नापित की समाधियाँ लोगों को त्याग, वैराग्य और प्रेम का पाठ पढ़ती हुई उस हरिदास के अपूर्व अनुराग की घोषणा कर रही हैं। गौर-भक्त उन समाधियों के दर्शनों से अपने नेत्रों को सफल करते हैं और वहाँ की पावन धूलि को अपने मस्तक पर चढा़ते हुए उस घटना के स्मरण से रोते-रोते पछाड़ खाकर गिर पड़ते हैं। धन्य हैं। तभी तो कहा है- पारस में अरू संत में, संत अधिक कर मान। महाप्रभु गौरांग के गुणों के साथ हरिदास की अहैतु की भक्ति भी अमर हो गयी। गौर-भक्तों में हरिदास भी पूज्य बन गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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