श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी80. हाहाकार
श्रीवास ने माता से कहा- ‘माता! तुम सोच मत करो। तुम्हारा निमाई तुमसे जरूर मिलेगा। तुम्हारा पुत्र इतना कठोर नहीं है।’ माता संज्ञा शून्य-सी पड़ी हुई थी। नित्यानन्द जी ने माता के अपने हाथ से उठाया। उनके सम्पूर्ण शरीर में लगी हुई धूलि को अपने वस्त्र से पोंछा और उसे धैर्य दिलाते हुए वे कहने लगे- ‘माता! तुम इतना शोक मत करो। हमारा हृदय फटा जाता है। हम तुम्हारे दूसरे पुत्र हैं। हम तुमसे शपथपूर्वक कहते हैं, तुम्हारा निमाई जहाँ भी कहीं होगा, वहीं से लाकर हम उसे तुमसे मिला देंगे। हम अभी जाते हैं।’ नित्यानन्द जी की बात सुनकर माता ने कुछ धैर्य धारण किया। उन्होंने रोते-रोते कहा- ‘बेटा! मैं निमाई बिना जीवित न रह सकूंगी। तुम कहीं से भी उसे ढ़ूंढ़कर ले आ। नहीं तो मैं विष खाकर या गंगा जी में कूदकर अपने प्राणों को परित्याग कर दूंगी।’ नित्यानन्द जी ने कहा- ‘माँ! इस प्रकार के तुम्हारे रुदन को देखकर हमारी छाती फटती है। तुम धैर्य धरो। हम अभी जाते हैं।’ यह कहकर नित्यानन्द जी ने श्रीवास पण्डित को तो माता तथा विष्णुप्रिया जी की देख-रेख के लिये वहीं छोड़ा। वे जानते थे कि प्रभु कटवा (कण्टक नगर) में स्वामी केशव भारती से संन्यास लेने की बात कर रहे थे, अत: नित्यानन्द जी अपने साथ वक्रेश्वर, गदाधर, मुकुन्द और चन्द्रशेखर आचार्य को लेकर गंगा पर करके कटवाकी ही ओर चल पड़े। |