श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी73. भक्तों की लीलाएँ
एक दिन संकीर्तन के समय मेघ आने लगे। आकाश में बड़े-बड़े़ बादल आकर चारों ओर घिर गये। असमय में आकाश को मेघाच्छन्न देखकर भक्त कुछ भयभीत-से हुए। उन्होंने समझा सम्भव है, मेघ हमारे इस संकीर्तन के आनन्द में विघ्न उपस्थित करें। प्रभु ने भक्तों को समझकर उसी समय एक हुंकार मारी। प्रभु के हुंकार सुनते ही मेघ इधर-उधर हट गये और आकाश बिलकुल साफ हो गया। अब एक घटना ऐसी है, जिसे सुनकर सभी संसारी प्राणी क्या अच्छे-अच्छे परमार्थ-मार्ग के पथिक भी आश्चर्यचकित हो जायँगे। इस घटना से पाठकों को पता चल जाएगा कि भगवद्भक्ति में कितना माधुर्य है। जिसे भगवत्कृपा का अनुभव होने लगा है, ऐसे अनन्य भक्त के लिये माता-पिता, दारा-पुत्र तथा अन्यान्य सभी बन्धु-बान्धवों के प्रति तनिक भी मोह नहीं रह जाता। वह अपने इष्टदेव को ही सर्वस्व समझता है! इष्टदेव की प्रसन्नता में ही उसे प्रसन्नता है, वह अपने आराध्यदेव की प्रसन्नता के निमित्त सबका त्याग कर सकता है। दुष्कर-से-दुष्कर समझे जाने वाले कार्य को प्रसन्नतापूर्वक कर सकता है। एक दिन सभी भक्त मिलकर श्रीवास के आंगन में प्रेम के सहित संकीर्तन कर रहे थे। उस दिन न जाने क्यों, सभी भक्त संकीर्तन में एक प्रकार के अलौकिक आनन्द का अनुभव करने लगे। सभी भक्त नाना वाद्यों के सहित प्रेम में विभोर हुए शरीर की सुधि भुलाकर नृत्य कर रहे थे। इतने ही में प्रभु भी संकीर्तन में आकर सम्मिलित हो गये। |