श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी64. जगाई-मधाई का उद्धार
शाम को नियतिम रूप से भक्त संकीर्तन करते थे और कभी-कभी तो रात्रि भर संकीर्तन होता रहता था। इन दोनों के डेरा डालने पर भी संकीर्तन ज्यों-का-त्यों ही होता रहा। रात्रि में सभी भक्त एकत्रित हुए और उसी प्रकार लय एवं ध्वनि के साथ खोल, मृदंग, करताल और मजीरा आदि वाद्यों सहित भगवान के सुमधुर नामों का संकीर्तन होने लगा। संकीर्तन की त्रितापहारी, अनन्त अघसंहारी, सुमधुर ध्वनि इन दोनों भाइयों के कानों में भी पड़ी। ये दोनों शराब के मद में तो चूर थे ही, उस कर्णप्रिय ध्वनि के श्रवणमात्र से और अधिक उन्मत्त हो गये। गर्मियों के दिन थे, बाहर अपने पलंगों पर पड़े हुए ये कीर्तन के जगत-पावनकारी रसामृत का पान करने लगे। कभी तो वे बेसुध होकर हुंकार मारने लगते, कभी पड़े-पड़े ही ‘अहा-अहा’ इस प्रकार कहने लगते। कभी भावावेश में आकर कीर्तन के लय के साथ उठकर नृत्य करने लगते। इस प्रकार ये संकीर्तन के माहात्म्य को बिना जानेही केवल उसके श्रवणमात्र से ही पागल-से हो गये। एक दिन दूर से कीर्तन की ध्वनि सुनकर ही इनके हृदय की कठोरता बहुत कुछ जाती रही। भला जिस हृदय में कर्णों के द्वारा भगवन्नाम का प्रवेश हो चुका है, वहाँ पर कठोरता रह ही कैसे सकती है? संकीर्तन श्रवण करते-करते ही ये दोनों भाई सो गये! प्रात:काल जब जगे तो इन्होंने भक्तों को घाट की ओर गंगास्नान के निमित्त जाते हुए देखा। महाप्रभु भी उधर से ही जा रहे थे। इन्होंने यह सब तो पहले ही सुन रखा था कि प्रभु ही संकीर्तन के जीवनदाता हैं। अत: प्रभु को देखते ही इन्होंने कुछ गर्वित स्वर में प्रसन्नता के साथ कहा- ‘निमाई पण्डित! रात्रि में तो बड़ा सुंदर गाना गा रहे थे, क्या ‘मंगलचण्डी’ के गीत थे? एक दिन अपने सभी साथियों के सहित हमारे यहाँ गान करो। तुम जो-जो सामग्री बताओगे वह सब हम मंगा देंगे। एक दिन जरूर हमारे यहाँ चण्डीमंगल होना चाहिये। हमें तुम्हारे गीत बहुत भले मालूम पड़ते है।' भगवन्नाम-संकीर्तन का कैसा विलक्षण प्रभाव है! केवल अनिच्छापूर्वक श्रवण करने का यह फल है कि जो दोनों भाई किसी से सीधे बातें ही करना नहीं जानते थे, वे ही महाप्रभु से अपने यहाँ गायन करने की प्रार्थना करने लगे। प्रभु ने इनकी बातों का कुछ भी उत्तर नहीं दिया। वे उपेक्षा करके आगे चले गये। |