श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी59. भक्तों को भगवान के दर्शन
भक्त श्रीधर से तो पाठक परिचित ही होंगे। ये केला के खोल और दोना बेचने वाले वे ही भाग्यवान भक्त हैं, जिनसे प्रभु सदा छेड़खानी किया करते थे और घड़ी-दो-घड़ी तंग करके ही आधे दामों पर इनसे खोल लेते थे। केले की गहर के डंठल के नीचे केले में जो मोटी-सी डंठी शेष रह जाती है, उसी को बंगाल में खोल कहते हैं। बंगाल में उसका शाक बनता है। प्रभु के भोजनों में जब तक श्रीधर के खोल का साग नहीं होता था, तब तक उन्हें अन्य पदार्थ स्वादिष्ट ही नहीं लगते थे। केले के ऊपर जो कोमल-कोमल खोपटा होता है, उसे काट-काटकर और उसके थाल से बनाकर बहुत गरीब दूकानदार उन्हें भी बेचते हैं। उसमें स्त्रियाँ तथा पुरुष पूजन की सामग्री रखकर पूजा करने के निमित्त ले जाते हैं। श्रीधरजी इन्हीं चीजों को बेचकर अपना जीवन निर्वाह करते थे। इनसे जो आमदनी हो जाती, उसमें से आधी से तो देवपूजन तथा गंगापूजन आदि करते और आधी से जिस किसी प्रकार पेट भरते। दिन-रात ये उच्च स्वर से हरिनाम-कीर्तन करते रहते। इसलिये इनके पास में रहने वाले मनुष्य इनसे बहुत ही नाराज रहते। उनका कहना था कि- ‘यह बूढ़ा रात्रि में किसी को सोने ही नहीं देता!’ इस गरीब दूकानदार की सभी उपेक्षा करते। कोई भी इन्हें भक्त नहीं समझता, किंतु प्रभु का इन पर हार्दिक स्नेह था। वे इनकी भगवत-भक्ति को जानते थे, इसीलिये उन्होंने भगवत-भाव में भी इन्हें स्मरण किया। |