श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी58. सप्तप्रहरिया भाव
श्रीवास पण्डित के सेवकों ने घर में दीपक जलाये, किंतु उन क्षीण दीपकों की ज्योति प्रभु की देह के दिव्य प्रकाश में फीकी-फीकी-सी प्रतीत होने लगी। किसी को पता ही नहीं चला कि दिन कब समाप्त हुआ और कब रात्रि हो गयी। सभी उस दिव्यालोक के प्रकाश में अपने आपे को भूले हुए बैठे थे। |