श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी56. हरिदास की नाम-निष्ठा
गोराई क़ाज़ी की सम्मति से मुलुकपति ने उन्हें गंगा जी में फेंक देने की आज्ञा दी। गोराई क़ाज़ी ने कहा- ‘कब्र में गड़वा देने से तो इसे मुसलमानी- धर्म के अनुसार बहिश्त(स्वर्ग) की प्राप्ति हो जायगी। इसने तो मुसलमानी-धर्म छोड़ दिया था। इसलिये इसे वैसे ही गंगा में फेंक देना ठीक है।’ सेवकों ने मुलुकपति की आज्ञा से हरिदास जी के शरीर को पतितपावनी श्रीभागीरथी के प्रवाह में प्रवाहित कर दिया। माता के सुखद, शीतल जलस्पर्श से हरिदास को चेतना हुई और वे प्रवाह में बहते-बहते फुलिया के समीप घाट पर आ गये। इनके दर्शन से फुलियानिवासी सभी लोगों को परम प्रसन्नता हुई। चारों ओर यह समाचार फैल गया। लोग हरिदास के दर्शन के लिये बड़ी उत्सुकता से आने लगे। जो भी जहाँ सुनता वहीं से इनके पास दौड़ा आता। दूर-दूर से बहुत-से लोग आने लगे। मुलुकपति तथा गोराई क़ाज़ी ने भी यह बात सुनी। उनका भी हृदय पसीज उठा और इस दृढ़प्रतिज्ञ महापुरुष के प्रति उनके हृदय में भी श्रद्धा के भाव उत्पन्न हुए। वे भी हरिदास जी के दर्शन के लिये फुलिया आये। मुलुकपति ने नम्रता के साथ इनसे प्रार्थना की- ‘महाशय! मैं आपको दण्ड देने के लिये मजबूर था। इसीलिये मैंने आपको दण्ड दिया। मैं आपके प्रभाव को जानता नहीं था, मेरे अपराध को क्षमा कीजिये। अब आप प्रसन्नतापूर्वक हरि-नाम-संकीर्तन करें। आपके काम में कोई विघ्न न करेगा।’ हरिदास जी ने नम्रतापूर्वक कहा- ‘महाशय! इसमें आपका अपराध ही क्या है? मनुष्य अपने कर्मों के ही अनुसार दुःख-सुख भोगता है। दूसरे मनुष्य तो इसके निमित्त बन जाते हैं। मेरे कर्म ही ऐसे होंगे। आप किसी बात की चिन्ता न करें, मेरे मन में आपके प्रति तनिक भी रोष नहीं है।’ हरिदास की ऐसी सरल और निष्कपट बात सुनकर मुलुकपति को बड़ा आनन्द हुआ, वह इनके चरणों में प्रणाम करके चला गया। फुलियाग्राम के और भी वैष्णव ब्राह्मण आ-आकर हरिदास जी की ऐसी अवस्था देखकर दुःख प्रकाशित करने लगे। कोई-कोई तो उनके घावों को देखकर फूट-फूटकर रोने लगे। इस पर हरिदास जी ने उन ब्राह्मणों को समझाते हुए कहा- ‘विप्रगण! आप लोग सभी धर्मात्मा हैं। शास्त्रों के मर्म को भली-भाँति जानते हैं। बिना पूर्व-कर्मों के दुःख-सुख की प्राप्ति नहीं होती। मैंने इन कानों से भगवन्नाम की निन्दा सुनी थी, उसी का भगवान ने मुझे फल दिया है। आप लोग किसी प्रकार की चिन्ता न करें। यह दुःख तो शरीर को हुआ है, मुझे तो इसका तनिक भी क्लेश प्रतीत नहीं होता। बस, भगवन्नाम का स्मरण बना रहे यही सब सुखों का सुख है। |