श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी55. भक्त हरिदास
सबसे पहले भगवान की इनके ऊपर यही एक बड़ी भारी कृपा हुई। अपना कहने के लिये इनके पास एक काठ का कमण्डलु भी नहीं था। भूख लगने पर ये गाँवों से भिक्षा माँग लाते और भिक्षा में जो भी कुछ मिल जाता, उसे चौबीस घंटे में एक ही बार खाकर निरन्तर भगवन्नाम का जप करते रहते। घर छोड़कर ये वनग्राम के समीप बेनापोल नाम के घोर निर्जन वन में फूस की कुटी बनाकर अकेले ही रहते थे। इनके तेज और प्रभाव से वहाँ के सभी प्राणी एक प्रकार की अलौकिक शान्ति का अनुभव करते। जो भी जीव इनके सम्मुख आता वही इनके प्रभाव से प्रभावान्वित हो जाता। ये दिन-रात्रि में तीन लाख भगवन्नामों का जप करते थे, सो भी धीरे-धीरे नहीं, किंतु खूब उच्च स्वर से। भगवन्नाम का ये उच्च स्वर से जप इसलिये करते थे कि सभी चर-अचर प्राणी प्रभु के पवित्र नामों के श्रवण से पावन हो जायँ। प्राणिमात्र की निष्कृति का ये भगवन्नाम को ही एकमात्र साधन समझते थे। इससे थोड़े ही दिनों में इनका यशःसौरभ दूर-दूर तक फैल गया। बड़ी-बड़ी दूर से लोग इनके दर्शन को आने लगे। दुष्ट बुद्धि के ईर्ष्यालु लोगों को इनका इतना यश असह्य हो गया। वे इनसे अकारण ही द्वेष मानने लगे। उन ईर्ष्यालुओं में वहाँ का एक रामचन्द्र खाँ नाम का बड़ा भारी जमींदार भी था। वह इन्हें किसी प्रकार नीचा दिखाना चाहता था। इनके बढ़े हुए यश को धूलि में मिलाने की बात वह सोचने लगा। साधकों को पतित करने के कामिनी और कांचन- ये ही दो भारी प्रलोभन हैं, इनमें कामिनी का प्रलोभन तो सर्वश्रेष्ठ ही समझा जाता है। रामचन्द्र खाँ ने उसी प्रलोभन के द्वारा हरिदास को नीचा दिखाने का निश्चय किया। किंतु उनकी रक्षा तो उनके साईं ही सदा करते थे। फिर चाहे सम्पूर्ण संसार ही उनका वैरी क्यों न हो जाता, उनका कभी बाल बाँका कैसे हो सकता था? किंतु नीच पुरुष अपनी नीचता से बाज थोड़े ही आते हैं। रामचन्द्र खाँ ने एक अत्यन्त ही सुन्दरी षोडशवर्षीया वेश्या को इनके भजन में भंग करने के लिये भेजा। वह रूपगर्विता वेश्या भी इन्हें पतित करने की प्रतिज्ञा करके खूब सज-धज के साथ हरिदास जी के आश्रम पर पहुँची। उसे अपने रूप का अभिमान था, उसकी समझ थी कि कोई भी पुरुष मेरे रूप-लावण्य को देखकर बिना रीझे नहीं रह सकता। किंतु जो हरिनाम पर रीझे हुए हैं, उनके लिये यह बाहरी सांसारिक रूप-लावण्य परम तुच्छ है, ऐसे हरिजन इस रूप-लावण्य की ओर आँख उठाकर भी न हीं देखते। |