श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी53. निमाई और निताई की प्रेम-लीला
प्रभु की ऐसी बात सुनकर शचीमाता को परम प्रसन्नता हुई और वे जल्दी से भोजन बनाने के लिये उद्यत हो गयीं। इधर प्रभु श्रीवासपण्डित के घर निताई को लिवाने के लिये चले। श्रीवास के घर पहुँचकर प्रभु ने नित्यानन्द जी से कहा- 'श्रीपाद! आज आपका हमारे घर निमन्त्रण है। चलो, आज हम-आप साथ-ही-साथ भोजन करेंगे।' इतना सुनते ही नित्यानन्द जी बालकों की भाँति आनन्द में उछल-उछलकर नृत्य करने लगे और नृत्य करते-करते कहते जाते थे- 'अहा रे, लाल के, खूब बनेगी, शचीमाता के हाथ का भात खायेंगे, मौज उड़ायेंगे, प्रभु को खूब छकायेंगे, कुछ खायेंगे, कुछ शरीर में लगायेंगे।' प्रभु ने इन्हें ऐसी चंचलता करते देखकर मीठी-सी डाँट देते हुए प्रेमपूर्वक कहा- 'देखना खबरदार, वहाँ ऐसी चंचलता मत करना। माता आपकी चंचलता से बहुत घबड़ाती है, वह डर जायगी। वहाँ चुपचाप ठीक तरह से भोजन करना।' प्रभु की प्रेममिश्रित मीठी डाँट को सुनकर बालकों की भाँति चौंककर और बनावटी गम्भीरता धारण करके कानों पर हाथ रखते हुए नित्यानन्द जी कहने लगे- 'बाप रे! चंचलता! चंचलता कैसी? हम तो चंचलता जानते तक नहीं। चंचलता तो पागल लोग किया करते हैं, हम क्या पागल हैं जो चंचलता करेंगे?' इन्हें इस प्रकार स्वाँग करते देखकर प्रभु ने इनकी पीठ पर एक हलकी-सी धाप जमाते हुए कहा- 'अच्छा चलिये, देर करने का काम नहीं। यह तो हम जानते हैं कि आप अपनी आदत को कहीं छोड़ थोड़े ही देंगे, किंतु देखना, वहाँ जरा सँभलकर रहना।' यह कहते-कहते दोनों भाई आपस में प्रेम की बातें करते हुए घर पहुँचे। माता भोजन बना ही रही थीं कि ये दोनों पहुँच गये। पहुँचते ही नित्यानन्द जी ने बालकों की भाँति बड़े जोर से कहा- 'अम्मा! बड़ी भूख लग रही है। पेट में चूहे-से कूद रहे हैं। अभी कितनी देर है, मेरे तो भूख के कारण प्राण निकले जा रहे हैं।' प्रभु ने इन्हें संकेत से ऐसा न करने को कहा। तब आप फिर उसी तरह जोरों से कहने लगे- 'देख अम्मा! गौर मुझे रोक रहे हैं, भला भूख लगने पर भोजन भी न माँगू।' माता इनकी ऐसी भोली-भाली बातें सुनकर हँसने लगीं। उन्होंने जल्दी से दो थालियों में भोजन परोसा। विष्णुप्रिया जी ने दोनों के हाथ-पैर धुलाये। हाथ-पैर धोकर दोनों भोजन करने बैठे। माता प्रेम से अपने दोनों पुत्रों को परोसने लगीं। प्रभु के साथ में और भी उनके दो-चार अन्तरंग भक्त आ गये थे। वे उन दोनों भाइयों को इस प्रकार प्रेमपूर्वक भोजन करते देख प्रेमसागर में आनन्द के साथ गोते लगाने लगे। |