श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी51. अद्वैताचार्य को श्यामसुन्दररूप के दर्शन
प्रभु की आज्ञा पाकर श्रीवास के सहित आचार्य महाप्रभु के घर चलने को तैयार हो गये। घर पहुँचकर प्रभु ने देखा, माता सब सामान बनाकर चौके में बैठी सब लोगों के आने की प्रतीक्षा कर रही है। प्रभु ने जल्दी से हाथ-पैर धोकर आचार्य और श्रीवास पण्डित के स्वयं पैर धुलाये और उन्हें बैठने को सुन्दर आसन दिये। दोनों के बहुत आग्रह करने पर प्रभु भी आचार्य और श्रीवास के बीच में भोजन करने के लिये बैठ गये। शचीमाता ने आज बड़े ही प्रेम से अनेक प्रकार के व्यंजन बनाये थे। भोजन परोस जाने पर दोनों ने भगवान के अर्पण करके तुलसी मंजरी पड़े हुए उन सभी व्यंजनों को प्रेम के साथ पाया। प्रभु बार-बार आग्रह कर-करके आचार्य को और अधिक परसवा देते और आचार्य भी प्रेम के वशीभूत होकर उसे पा लेते। इस प्रकार उस दिन तीनों ने ही अन्य दिनों की अपेक्षा बहुत अधिक भोजन किया। किंतु उस भोजन में चारों ओर से प्रेम-ही-प्रेम भरा था। भोजनोपरान्त प्रभु ने श्रीविष्णुप्रिया से लेकर आचार्य तथा श्रीवास पण्डित को मुख-शुद्धि के लिये ताम्बूल दिया। कुछ आराम करने के अनन्तर प्रभु की आज्ञा लेकर अद्वैत तो शान्तिपुर चले गये और श्रीवास अपने घर को चले गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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